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________________ वर्षावास सम्बन्धी विधि-नियम...307 स्थिति से परिचित होने के लिए रुकते हैं। वर्षाऋतु के दो महीने अहिंसा महाव्रत का पालन करने के उद्देश्य से रहते हैं तथा वर्षावसान के पश्चात एक महीना श्रावकों की शंका आदि का समाधान करने के लिए ठहरते हैं।46 मनोवैज्ञानिक दृष्टि से ये कारण औचित्यपूर्ण हैं। ___ बौद्धसंघीय भिक्षु-भिक्षुणियों के लिए वर्षावास सम्बन्धी अनेक नियम प्राप्त होते हैं। मूलत: भिक्षणियों को भिक्षुओं के साथ ही वर्षावास करने की अनुमति है। भिक्षुणियों के लिए निर्धारित अष्टगुरुधर्म नियम के अनुसार कोई भी भिक्षुणी भिक्षु रहित ग्राम या नगर में वर्षावास नहीं कर सकती है, यह अनतिक्रमणीय नियम है, जिसका उल्लंघन किसी भी स्थिति में करने का निषेध है। बौद्ध परम्परा में इस नियम के पीछे मुख्य तीन प्रयोजन परिलक्षित होते हैं- 1. प्रवारणा, 2. उपोसथ और 3. शील सुरक्षा। यहाँ भिक्षु एवं भिक्षुणी के लिए वर्षावास के तुरन्त बाद प्रवारणा अर्थात वर्षावास में हुए दृष्ट, श्रुत या परिशंकित अपराधों को संघ के समक्ष प्रकट करना अनिवार्य माना गया है। प्रवारणा के पश्चात ही उनकी शुद्धि मानी जाती है। अत: भिक्षुओं के साथ भिक्षुणियों को वर्षावास करना आवश्यक बतलाया गया है, ताकि वर्षावसान के पश्चात उन्हें प्रवारणा के लिए भिक्षु संघ की तलाश में इधर-उधर घूमना न पड़े। बौद्ध संघ के नियमानुसार भिक्षणियों को प्रति पन्द्रहवें दिन उपोसथ की तिथि एवं उपदेश श्रवण का समय ज्ञात करने हेतु भिक्षु संघ से पूछना होता है, अत: इस नियम की परिपूर्ति हेतु भी भिक्षुणी को अकेले वर्षावास करने का निषेध किया गया है। भिक्षु के साथ भिक्षुणी का वर्षावास करने सम्बन्धी मुख्य कारण शील सुरक्षा भी माना गया है। इससे वे किसी भी स्थिति में निर्भय रह सकती हैं। साथ ही भिक्षु संघ की अनुमति के बिना वे स्वेच्छा से कोई भी कार्य नहीं कर सकती हैं। दूसरे, वर्षावास स्थित भिक्षुणियों के लिए कहीं भी आने-जाने का उत्सर्गत: निषेध किया गया है, जबकि भिक्षुओं को कुछ परिस्थितियों में वर्षावास के मध्य भी आने-जाने की अनुमति दी गई है, जिससे भिक्षुणी संघ की समस्याओं का भी निराकरण संभव होता है। इस प्रकार विविध कारणों से भिक्षुणी संघ को भिक्षु संघ के साथ वर्षावास करने हेतु कहा गया है।47
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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