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________________ 306...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन दिशा में सुपार्श्वनाथ और चन्द्रप्रभु स्तोत्र बोलकर पूर्ववत सामायिक दण्डक, कायोत्सर्ग, थोस्सामि व लघुचैत्यभक्ति पाठ बोलते हैं। __ इस प्रकार चारों दिशाओं में तीर्थंकर प्रभु के स्तोत्र बोलते हुए लघुचैत्यभक्ति करते हैं। . वर्षायोग समापन के समय पूर्ववत सामायिक दण्डक, कायोत्सर्ग थोस्सामि कहकर पञ्चमहागुरु भक्ति पाठ पढ़ते हैं। पुन: पूर्ववत क्रिया-विधि करते हुए शान्ति भक्ति पाठ बोलते हैं। पुन: पूर्ववत सामायिक दण्डकादि बोलकर समाधिभक्ति कहते हैं। इस प्रकार वर्षायोग प्रारम्भ के समय सिद्धभक्ति, योगिभक्ति, लघुचैत्यभक्ति एवं समापन के समय गुरुभक्ति, शान्तिभक्ति, समाधिभक्ति 3+3 छह भक्तिपाठ किए जाते हैं। ___ यह विधि सभी साधुजन सामूहिक रूप से सम्पन्न करते हैं तथा आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी की पूर्व रात्रि में वर्षायोग धारण एवं कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी की पिछली रात्रि में वर्षायोग निष्ठापन (समापन) क्रिया की जाती है। श्वेताम्बर परम्परा में वर्षावास स्थापना एवं समापन के दिन किसी विशेष प्रकार की विधि प्रक्रिया नहीं होती है, केवल उस दिन प्रतिक्रमण के अन्तर्गत पालनीय मर्यादाओं का संकेत या निर्देश करते हैं। तुलनात्मक अध्ययन ___ संन्यास धर्म का पालन करने वाले प्रायः सभी धर्मसंघों में साधु-साध्वियों के लिए वर्षाकाल में एक स्थान पर रहने का उत्सर्ग विधान बनाया गया है। कुछेक अपवादों को छोड़कर वे किसी भी स्थिति में वर्षावास में भ्रमण नहीं कर सकते हैं। यद्यपि परम्परागत शास्त्र एवं गुरु परम्परागत सामाचारी के कारण इस विषय में किंचित मतान्तर पाये जाते हैं। ___ जैसे श्वेताम्बर साहित्य में आचार्य, उपाध्याय, गणावच्छेदक और प्रवर्तिनी को वर्षावास के दिनों में एक निर्धारित संख्या में साधु-साध्वियों के साथ रहने का विधान किया गया है। ऐसा वर्णन दिगम्बर साहित्य में जानने को नहीं मिलता है। यद्यपि वर्षावास सम्बन्धी अनेक नियम जैन धर्म के दोनों सम्प्रदायों में प्राय: समान हैं। मूलाचार टीका में वर्षावास के कारणों का निरूपण करते हुए कहा गया है कि मुनि वर्षाऋतु आरम्भ होने के एक माह पूर्व नगरवासियों की वास्तविक
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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