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________________ 294... जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन कारणवश लिया गया, किन्तु यह आपवादिक परिपाटी मन्दिरमार्गी सम्प्रदाय में आज भी विद्यमान है। यही वजह है कि वर्षावास स्थापना की मूल तिथि में परिवर्तन कर पूर्णिमा की जगह चतुर्दशी का दिन स्वीकारा गया है। स्थानकवासी आदि कुछ परम्पराएँ आज भी पंचमी तिथि के दिन संवत्सरी पर्व मनाते हैं। वर्षावास : एक शास्त्रीय चर्चा वर्षावास, जिनशासन का महान पर्व है। इसका मूल्य सार्वदेशिक और सार्वकालिक है। इसकी पूर्वोत्तरकालीन परम्परा का ज्ञान करना अत्यावश्यक है। आगम परम्परा - आगम युग में 'संवत्सरी' यह शब्द प्रचलित नहीं था । संवत्सरी का मूल नाम है - पर्युषणा । पर्युषणा के विषय में आगमों में निर्देश मिलता है कि श्रमण भगवान महावीर ने पर्युषणाकल्प के अनुसार वर्षाऋतु के पचास दिन बीत जाने पर वर्षावास की पर्युषणा की थी। गणधरों, स्थविरों और आधुनिक श्रमण संघ ने भी उस परम्परा का अनुसरण किया। कल्पसूत्र में प्रारम्भ के पचास दिन का विशेष उल्लेख है । समवायांगसूत्र में उत्तरवर्ती दिनों का भी उल्लेख किया गया है। उसके अनुसार श्रमण भगवान महावीर ने वर्षावास के पचासवें दिन तथा सत्तर दिन शेष रहने पर वर्षावास की पर्युषणा की। प्राचीन परम्परा-भाष्यकार और चूर्णिकार द्वारा दिया गया निर्देश पर्युषणा की प्राचीन परम्परा है। इन व्याख्याकारों ने आषाढ़ पूर्णिमा के दिन पर्युषणा करना उत्सर्ग मार्ग बतलाया है तथा पचास दिन पर्यन्त पाँच-पाँच दिन बढ़ाते हुए पंचमी, दशमी, पूर्णिमा या अमावस्या को पर्युषणा करना अपवाद मार्ग है। इनके मत में यह नियम था कि पर्युषणा पर्व तिथि में होनी चाहिए। आधुनिक परम्परा - आधुनिक परम्परा में पर्युषणा के स्थान पर संवत्सरी शब्द का प्रयोग हो रहा है और पर्युषणा शब्द का प्रयोग संवत्सरी के सहायक दिनों के लिए होता है। इस प्रकार पर्युषणा का मूल रूप संवत्सरी के नाम से प्रचलित हो गया। प्राचीन काल में पर्युषणा का एक ही दिन था, वर्तमान में अष्टाह्निक पर्युषणा मनाई जाती है। संवत्सरी का पर्व आठवें दिन मनाया जाता है। दिगम्बर परम्परा में संवत्सरी जैसा कोई शब्द उपलब्ध नहीं है। उनकी परम्परा में दश लक्षण पर्व मनाया जाता है। सामान्य विधि के अनुसार उसका प्रथम दिन भाद्र शुक्ला पंचमी का दिन होता है। वास्तविक स्थिति यह है कि
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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