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________________ 212...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन 33. वही, पृ. 5 34. वही, पृ. 5 35. उड्ढं थिरं अतुरियं, पुव्वं ता वत्थमेव पडिलेहे। तो बिइयं पप्फोडे, तइयं च पुणो पमज्जेज्जा । (क) उत्तराध्ययनसूत्र, 26/24 (ख) ओघनियुक्ति, गा. 264 36. अणच्चावियं अवलियं, अणाणुबन्धि अमोसली चेव। छप्पुरिमा नवखोडा, पाणिपाण विसोहणं । (क) उत्तराध्ययनसूत्र, 26/25 (ख) ओघनियुक्ति, 265 (ग) पंचवस्तुक, गा. 240-242 37. अणुणाइरित्तपडिलेहा, अविच्चासा तहेव य। पढमं पयं पसत्थं, सेसाणि य अप्पसत्थाई ।। (क) उत्तराध्ययनसूत्र, 26/28 (ख) ओघनियुक्ति, 266 38. आरभडा सम्मदा, वज्जेयव्वा य मोसली तइया । पप्फोडणा चउत्थी, विक्खित्ता वेइया छट्ठी॥ उत्तराध्ययनसूत्र, 26/26 39. पसिढिल पलंब लोला, एगामोसा अणेगरुवधुणा । कुणइ पमाणि पमायं, संकिए गणणोवग्गं कुज्जा ॥ उत्तराध्ययनसूत्र, 26/27 40. (क) उत्तराध्ययनसूत्र, मधुकरमुनि, 26/29,30 (ख) ओघनियुक्ति, संपा. दीपरत्नसागर, आगम सुत्ताणि भा. 27, गा. 461-62 की वृत्ति, पृ. 114 41. ओघनियुक्ति, गा. 463 की वृत्ति, पृ. 114 42. ओघनियुक्ति, 753 43. पंचवस्तुक, गा. 262 44. (क) ओघनियुक्ति, 628-630 (ख) पंचवस्तुक, गा. 436-438 45. पंचवस्तुक स्वोपज्ञवृत्ति, गा. 255-256
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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