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________________ . ७ ० 206...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन तिरपनी 7 25 दो बार सुखासन करेटा 8 25 दो बार सुखासन प्याले 9 25 दो बार सुखासन घड़ा 10 25 दो बार सुखासन डोरी 11 10 दो बार सुखासन रजस्त्राण 12 25 दो बार सुखासन पात्रस्थापन 13 25 दो बार सुखासन पात्रप्रोंछनक 14 25 दो बार सुखासन • इसके सिवाय चम्मच, घड़ा, गरणा, चलनी आदि जो भी पात्रोपकरण के रूप में उपयोग किये जायें, उनकी 25-25 बोल से प्रतिलेखना करनी चाहिए। प्राचीन परम्परानुसार सायंकालीन प्रतिलेखना यन्त्र उपकरण क्रम बोल संख्या आसन मुखवस्त्रिका 1 25 दो बार सुखासन चोलपट्ट 2 25 दो बार सुखासन गोच्छग 3 25 दो बार सुखासन चिलमिली 25 दो बार सुखासन पात्रकबंध 5 25 दो बार सुखासन पटल सुखासन रजस्त्राण 7 25 सुखासन मात्रक सुखासन पात्रक सुखासन कंबली 10 25 उकडूं सूती चद्दर संस्तारक उत्तरपट्ट 13 25 रजोहरण डंडी 15 10 ऊनी ओघारिया 16 25 सूती औघारिया __17 उ उ उ उ उ उ उ उ उ उ उ उ उ उ उज 层层层层层层层层层层层层层层层 galegricaneleanlesalegile 40040
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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