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________________ उपधि और उपकरण का स्वरूप एवं प्रयोजन...155 (ग) प्रवचनसारोद्धार, 534-36 की टीका 40. (क) ओघनियुक्ति, 318-319 (ख) पंचवस्तुक, 829-831 की टीका (ग) प्रवचनसारोद्धार, 536-537 की टीका 41. (क) ओघनियुक्ति, 320 (ख) पंचवस्तुक, 832 की टीका (ग) प्रवचनसारोद्धार, 538 की टीका 42. पंचवस्तुक, 833 43. वही, 834 टीका 44. वही, 835-836 45. वही, 837 46. ओघनियुक्ति, 322-334 47. पंचवस्तुक, 838 48. (क) ओघनियुक्ति, 728 (ख) ओघनियुक्ति भाष्य, 321, 683 49. निशीथसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, पृ. 32-34 50. पाय पमज्जणा हेडं, केसरिआ पाए-पाए एक्केक्का । गोच्छग पत्तट्ठवणं, एक्केक्कं गणण माणेणं ।। ओघनियुक्ति, 696 51. पंचवस्तुक टीका, भा. 2 पृ. 371 52. दशवैकालिकसूत्र, 4/23 53. मूलाचार, 10/912 54. भगवती आराधना, 96 55. क्रियासार, 25 56. (क) उत्तराध्ययनसूत्र, 26/23, (ख) दशवैकालिकसूत्र, 4/23, (ग) स्थानांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 5/1/191 (घ) बृहत्कल्पसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 2/30 (ङ) निशीथसूत्र, 4/23 57. उत्तराध्ययनसूत्र, 17/9 58. (क) दशवैकालिकसूत्र, 4/23 (ख) उत्तराध्ययनसूत्र, 26/23
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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