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________________ उपधि और उपकरण का स्वरूप एवं प्रयोजन...153 ओहोवहिम्मि एए, अज्जाणं पन्नवीसं तु ॥ (क) ओघनियुक्ति, 676-677 . (ख) पंचवस्तुक टीका, 680-83 11. पंचवस्तुक टीका, 784 12. वही, 785-87 13. वही, 788-791 14. (क) ओघनियुक्ति, 680 (ख) पंचवस्तुक, गा. 792 की टीका (ग) प्रवचनसारोद्धार, गा. 500 की टीका 15. (क) ओघनियुक्ति, 691 (ख) पंचवस्तुक, 798 की टीका (ग) प्रवचनसारोद्धार, 501 की टीका (क) ओघनियुक्ति, 694 (ख) पंचवस्तुक, 799 की टीका (ग) प्रवचनसारोद्धार, 502 की टीका (क) ओघनियुक्ति, 701, 703, 705 की टीका (ख) पंचवस्तुक, 802-806 की टीका (ग) प्रवचनसारोद्धार, 503-505 की टीका 18. पंचवस्तुक, 807 19. (क) ओघनियुक्ति, 708 (ख) पंचवस्तुक, 808 की टीका (ग) प्रवचनसारोद्धार, 506 की टीका 20. पंचवस्तुक, 809 21. ओघनियुक्ति, 706 22. बृहत्कल्पभाष्य, 3969 23. पंचवस्तुक, 812 24. प्रवचनसारोद्धार, 507 की टीका 25. पंचवस्तुक, 813 की टीका 26. (क) ओघनियुक्ति, 708 (ख) पंचवस्तुक, 814 (ग) प्रवचनसारोद्धार, 508
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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