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________________ उपधि और उपकरण का स्वरूप एवं प्रयोजन... 143 जिससे पाँव साफ किया जाता हो उससे पात्र साफ करना उचित नहीं है, इसीलिए ये तीनों अलग-अलग उपकरण बना लिए गये। मूल में तो ये एक ही थे और इनका प्रयोजन स्थान आदि अथवा शरीर आदि को रज आदि से रहित करना था। यहाँ ज्ञातव्य है कि श्वेताम्बर परम्परा में मान्य प्राचीन आगम आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, भगवती, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा आदि में मुख्यतः 'पायपुंछण' शब्द का ही उल्लेख मिलता है। उत्तराध्ययनसूत्र” में ‘पायकंबल’ ऐसा प्रयोग मिलता है। इसे पृथक-पृथक दो शब्द मानने पर पात्र और कंबल जैसे दो उपकरण ज्ञात होते हैं, किन्तु उसे एक ही शब्द मानने पर इसका अर्थ भी पादप्रोंछन हो सकता है। टीकाकार ने यही अर्थ किया है क्योंकि प्राचीन उल्लेखों के अनुसार पात्रप्रोंछन एक हाथ लम्बा - चौड़ा कम्बल का टुकड़ा होता था। रजोहरण शब्द का प्रयोग परवर्ती आवश्यकसूत्र, दशवैकालिक, बृहत्कल्प, निशीथ, स्थानांग, भगवती, ज्ञाताधर्मकथा और प्रश्नव्याकरण आदि आगमों में उपलब्ध है। गोच्छग शब्द का उल्लेख दशवैकालिक के अतिरिक्त उत्तराध्ययन, भगवती और बृहत्कल्पसूत्र में भी हुआ है। 58 यदि इन ग्रन्थों के कालक्रम को ध्यान में रखकर यह चर्चा की जाए तो स्पष्ट होता है कि आचारांग में रजोहरण या पिच्छी का उल्लेख नहीं है, मात्र पायपुंछन का उल्लेख है। डॉ. सागरमल जैन की दृष्टि से प्रारम्भ में ये दोनों ही पर्यायवाची थे। जहाँ तक पिच्छी का प्रश्न है उसका प्रथम उल्लेख छठीं -सातवीं शती के परवर्ती ग्रन्थों में ही मिलता है। मूलाचार और भगवती आराधना के मूल में कहीं भी पिच्छी शब्द का उल्लेख न होकर सर्वत्र प्रतिलेखन का ही उल्लेख है। 59 पिच्छिका— यह दिगम्बर भिक्षु भिक्षुणियों का बाह्य उपकरण है। इसे सूक्ष्म जीवों के रक्षार्थ एवं अहिंसा महाव्रत के परिपालनार्थ आवश्यक माना गया है। पिच्छिका का अर्थ है- मोर पिच्छों का एक साथ बंधा हुआ गुच्छ । मयूरपिच्छ रखने का मुख्य प्रयोजन जीव यतना है। इसके माध्यम से देह एवं भू-स्थित सूक्ष्म जीवों का निवारण किया जाता है। यह प्रतिलेखना में विशेष उपयोगी बनती है तथा सामायिक, वन्दन, प्रतिक्रमण, प्रायश्चित, आहार आदि अनेक क्रियाओं में संयमोपकरण का कार्य भी करती है।
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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