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________________ 118... जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन 11. संनिषद्या संभोग इस नियम के अनुसार सांभोगिक साधु द्वारा अन्य सांभोगिक को आसन आदि देना अथवा दो सांभोगिक आचार्यों द्वारा अपने-अपने आसन पर बैठकर संघाटक के रूप में श्रुत परावर्तना करना संनिषद्या संभोग है। 12. कथाप्रबन्ध संभोग - सांभोगिक साधु द्वारा अन्य सांभोगिक के साथ पाँच प्रकार की कथा करना कथाप्रबन्ध संभोग है। 1. अभिग्रह संभोग- सांभोगिक साधुओं के साथ यथाशक्ति बारह तप सम्बन्धी अभिग्रह ग्रहण करना अभिग्रह संभोग है। 2. दान ग्रहण संभोग - सांभोगिक साधुओं में परस्पर आहार आदि का लेन-देन करना दानग्रहण संभोग है। 3. अनुपालना संभोग - यह साध्वीवर्ग से सम्बन्धित है। इस व्यवस्था के अनुसार सांभोगक साधु द्वारा साध्वियों के लिए उनके योग्य क्षेत्र, उपधि आदि की विधियुत व्यवस्था करना, सहयोग करना, सुरक्षा का दायित्व निभाना आदि अनुपालना संभोग है। 4. उपपात संभोग- समानकल्पी साधु द्वारा अपेक्षा होने पर पाँच प्रकार की उपसंपदा ग्रहण करना, जैसे सूत्र और अर्थ के निमित्त उपसंपदा ग्रहण करना, देशान्तरगमन के इच्छुक दो आचार्यों में एक मार्गज्ञ हो और दूसरा अमार्गज्ञ हो तो उनमें अमार्गज्ञ आचार्य द्वारा मार्गज्ञ आचार्य से अनुमति लेकर उनके साथ विहरण करना आदि उपपात संभोग है। 5. संवास संभोग - सांभोगिक साधुओं का एक स्थानवर्ती होकर रहना संवास संभोग है। संभोग के मुख्य छह और सामान्य बारह भेदों द्वारा समानकल्पी श्रमणों के पारस्परिक व्यवहार की मर्यादा निश्चित की गई है। इनका अतिक्रमण करने पर समानकल्पी साधु या साध्वी के साथ सम्बन्ध विच्छेद कर दिया जाता है। असमान सामाचारी साधुओं के साथ उपधि, शय्या आदि का आदान-प्रदान करने पर दोनों प्रायश्चित्त के भागी बनते हैं । अतः यह व्यवहार सदृश सामाचारी का पालन करने वाले साधुओं में ही होता है। उपसंहार समान सामाचारी का पालन करने वाला मुनि अथवा जिसका अन्य मुनियों के साथ मंडली व्यवस्था का संबंध हो, वह साम्भोगिक कहलाता है। वर्तमान में
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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