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________________ अवग्रह सम्बन्धी विधि-नियम...111 मतैक्य है। हिन्दू संस्कृति में इसका पृथक से तो कोई विवरण उपलब्ध नहीं होता है यद्यपि संन्यासी के द्वारा भिक्षा, वस्त्र, पात्रादि वस्तुएँ याचनापूर्वक ग्रहण की जाती है। इससे अवग्रह की पुष्टि हो जाती है।14 ___ यदि हम अवग्रह की उपादेयता के सम्बन्ध में विचार करते हैं तो लौकिक और लोकोत्तर उभय जीवन में परिवार के मुखिया से अनुमति प्राप्त कर किसी कार्य को करने पर उसके श्रेष्ठ परिणाम ही देखे जाते हैं। इससे बड़ों का सम्मान एवं स्वयं में विनय का गुण विकसित होता है। आपसी सदभाव और स्नेह सरिता प्रवहमान होने से परिवार, समाज एवं संघ एक सूत्र में बंध जाते हैं और जीवन की विविध समस्याओं का निराकरण हो जाता है। सन्दर्भ-सूची 1. आचारांगसूत्र, अनु. मुनि सौभाग्यमल, श्रुत. 2, पृ. 392 2. वही, पृ. 392 3. (क) वही, 2/7/2/162 (ख) प्रवचनसारोद्धार, 681-683 4. (क) श्री भिक्षु आगम विषय कोश, भा. 2, पृ. 41 (ख) प्रवचनसारोद्धार, 684 5. बृहत्कल्पभाष्य, 684 की चूर्णि 6. बृहत्कल्पभाष्य, गा. 4845 की टीका 7. आचारांगसूत्र, भाग 2, पृ. 394 8. वही, 2/7/2/157 9. वही, 2/7 10. व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, 12/5/10 11. बृहत्कल्पभाष्य, 669-670 की टीका 12. व्यवहारभाष्य, 2216-2223 13. प्रवचनसारोद्धार, गा. 681-684 14. धर्मशास्त्र का इतिहास, भा. 1, पृ. 491-493
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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