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________________ अवग्रह सम्बन्धी विधि-नियम...105 3. गृहपति अवग्रह- किसी भू-भाग या स्थान विशेष का स्वामी गृहपति कहलाता है। मण्डल का नायक या गाँव का मुखिया भी गृहपति कहलाता है। अत: जिस भू-भाग में रहना हो उसके मालिक की अनुमति ग्रहण कर वहाँ ठहरना, गृहपति अवग्रह है। 4. सागारिक अवग्रह- सामान्य गृहस्थ सागारिक कहलाता है। वह घर बनाकर रहता है, इसलिए उन्हें सागारिक कहा है। इनके आधिपत्य सम्बन्धी किसी स्थान या वस्तु को उनकी अनुमतिपूर्वक ग्रहण करना, सागारिक अवग्रह है। जो गृहस्थ साधुओं को ठहरने के लिए स्थान देता है वह ‘शय्यातर' कहा जाता है। अत: सागारिक का एक अर्थ शय्यातर भी है। किसी स्थान या वस्तु को याचनापूर्वक ग्रहण करना तिर्यदिशा सम्बन्धी अवग्रह है। अधोदिशा में वापी, कूप, भूमिगृह तक जाना हो तो वहाँ गृहपति और सागारिक दोनों का अवग्रह माना जाता है। ऊर्ध्व दिशा में पर्वत के शिखर पर्यन्त चढ़ना हो तो वहाँ भी पूर्वोक्त दोनों का अवग्रह माना जाता है। 5. साधर्मिक अवग्रह- साधर्मिक का अर्थ है- समानधर्मी। समान धर्म वाले साधुओं के क्षेत्र में उनकी अनुमति लेकर रुकना साधर्मिक अवग्रह है। जैसे कोई मनि किसी गांव में गया हो और वहाँ कोई आचार्य अथवा स्थविर मनि आदि पहले से ही रूके हुए हैं और उन्होंने चातुर्मास भी वहीं किया हो तो उस गांव के आस-पास का क्षेत्र उनके अधिकृत कहलाता है। चातुर्मास के दो माह उपरान्त तक वह स्थान उनके अधिकृत कहा जाता है। यदि इस बीच अन्य मुनि को वहाँ रहना हो तो पूर्व स्थित मुनि या आचार्य की अनुज्ञा लेना आवश्यक है, अन्यथा उस क्षेत्र में रहना नहीं कल्पता है अथवा साधु-साध्वी के द्वारा परस्पर में किसी वस्तु का लेन-देन करना साधर्मिक अवग्रह है।' अवग्रह ग्रहण करने का क्रम आगमिक व्याख्याकारों के मतानुसार अपवाद विशेष के अवग्रह से सामान्य अवग्रह बाधित हो जाते हैं अर्थात पूर्व-पूर्व के अवग्रह उत्तर-उत्तर के अवग्रह से क्रमश: बाधित हैं, जैसे राजावग्रह में राजा ही प्रभु है, देवेन्द्र नहीं। किसी स्थान विशेष की देवेन्द्र द्वारा अनुज्ञा लिये जाने पर भी राजा की अनुमति के बिना मुनि उसके क्षेत्र में नहीं रह सकते। इसी प्रकार क्रमशः राजा, गृहपति और शय्यातर द्वारा अनुज्ञात क्षेत्र में साधर्मिक की अनुमति के बिना नहीं रहा जा
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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