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________________ 70...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन मध्यम तीर्थंकरों के शासन में होने वाले आचार व्यवस्था भेद से है। जैनागमों में आचार कल्प दस प्रकार के बताए गए हैं- 1. आचेलक्य-प्रमाणोपेत वस्त्र धारण करना 2. औद्देशिक-उद्देश्य से तैयार किया हुआ आहार 3. शय्यातर पिण्ड-साधु को मकान देने वाले गृहस्थ का भोजन आदि 4. राजपिण्ड- राजा के घर का आहार 5. कृतिकर्म-वन्दन 6. व्रत-महाव्रत 7. ज्येष्ठ-दीक्षादि पर्याय में वरिष्ठ 8. प्रतिक्रमण-आवश्यक क्रिया 9. मासकल्प-एक स्थान पर एक महीने से अधिक नहीं रहना 10. पर्युषणाकल्प-संवत्सरी के पश्चात 70 दिनों तक एक स्थान पर रहना। 1. अचेलक कल्प अचेलक का अर्थ है वस्त्र रहित। 'चेल' शब्द वस्त्र का पर्यायवाची है। 'अ' शब्द निषेधवाचक और अल्पार्थक दोनों है। इस तरह अचेल के दो अर्थ होते हैंनिर्वस्त्रधारी और अल्प वस्त्रधारी। भगवान महावीर दीक्षा के समय देवदूष्य वस्त्रधारी थे किन्तु कुछ समय के बाद उस वस्त्र को छोड़ दिया और अचेलक बन गए। इस तरह तीर्थंकर निर्वस्त्र अचेलक होते हैं जबकि जिनकल्पी मुनि आदि रजोहरण, मुखवस्त्रिका आदि रखते हैं, अतः अल्पवस्त्रधारी अचेलक कहलाते हैं। यह कल्प प्रथम एवं अन्तिम तीर्थंकर के शासन में होता है। ऋषभदेव और भगवान महावीर के साधु वस्त्रधारी होने पर भी मात्र श्वेत वस्त्र धारण करने के कारण व्यवहार में निर्वस्त्री कहे जाते हैं, क्योंकि उनके वस्त्र जैसे होने चाहिए वैसे नहीं होते हैं। मध्यवर्ती बाईस तीर्थंकरों के साधु नियम का पूर्ण रीति से पालन करने वाले होते हैं तथा अतिचार आदि का विचार स्वयं कर लेते हैं, अत: इन साधुओं के अचेलक या सचेलक दोनों प्रकार के आचार होते हैं। बहुमूल्य रंगीन वस्त्र पहनना सचेलक धर्म है और अल्प मूल्य वाले श्वेत वस्त्र पहनना अचेलक धर्म है। 2. औद्देशिक कल्प किसी अतिथि आदि के उद्देश्य से बनाया गया आहार औद्देशिक कहलाता है। औद्देशिक आहार चार प्रकार का होता है- 1. सामान्य रूप से संघ के निमित्त बनाया गया आहार 2. साधु-साध्वी के निमित्त बनाया गया आहार 3. उपाश्रय में रहने वाले साधु-साध्वी के उद्देश्य से निर्मित आहार 4. किसी व्यक्ति विशेष के लिए बनाया गया आहार।
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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