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________________ 56...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन नहीं करना चाहिए। जब सूर्य धनु एवं मीन राशि में हो, तब दो अमावस्याओं के बीच का काल मलमास कहा जाता है। जिस तिथि से सूर्य का उदय हो, उस तिथि को ही स्वीकार करें तथा उसी के अनुसार चतुर्दशी, अष्टमी, पाक्षिक आदि पर्वो की आराधना करें। अधिक मास में भी उपर्युक्त सभी कर्म विवर्जित करें। वर्षाकाल में केशलोच करें। ___ प्रवचनसारोद्धार आदि के निर्देशानुसार मुनिजन वर्षा ऋतु के आने से पूर्व सम्पूर्ण उपधि का प्रक्षालन कर लें। यदि जल की सुविधा न हो, तो भी पात्रनिर्योग अवश्य धोयें। आचार्य और ग्लान मुनि के वस्त्र मलिन होने पर किसी भी काल में धो सकते हैं, क्योंकि मलीन वस्त्र से गुरु की निन्दा होती है और ग्लान को अरुचि या अजीर्ण होता है। ___ वर्षा ऋतु में प्रासुक तिल का पानी, तुष का पानी, जौ का पानी और गर्म पानी तीन प्रहर तक ग्राह्य होता है। उसके बाद वह सचित्त हो जाता है, किन्तु ग्लान आदि के लिए अधिक समय तक भी रखा जा सकता है। इसी तरह खाद्य सामग्री आदि के सेवन में भी काल आदि का उपयोग रखें। यह वर्षा ऋतु की चर्या विधि है। शरद ऋतु-आश्विन और कार्तिक शरद ऋतु के महीने हैं। इन दिनों मुनिगण वर्षा ऋतु की भाँति ही विशिष्ट नियमों का पालन करें। विहार न करें, नई वस्तुएं न लें तथा परिमित आहार करें। ___ वर्षा और शरद् काल में मुनि एक स्थान पर रहते हैं, अत: गृहस्थ को प्रतिबोधित करने के लिए व्याख्यान दें। आचारदिनकर में व्याख्यान की विधि भी बताई गई है। सामान्यतया आचारांग आदि आगम एवं त्रिषष्टिशलाकापुरुष आदि के चरित्र का उपदेश दें। श्रावक के कर्तव्यादि का भी व्याख्यान करें। मुनि के लिए यह भी उत्सर्ग विधान है कि वह मार्गशीर्ष से लेकर आषाढ़ तक प्रत्येक मास में विहार करता रहे। एक स्थान पर रहने से व्यक्ति, वस्तु आदि के प्रति ममत्वभाव की वृद्धि होती है, शरीर सुखशील बनता है, अनावश्यक परिग्रह का संचय होता है और लोगों के लिए अनादर आदि के कारण भी बन सकते हैं। आगम वचन के अनुसार महीने के अन्तिम दिनों में एवं वर्षावास के पश्चात मुनियों को हमेशा विहार करना चाहिए। आगम में यह भी कहा गया है कि जिस गाँव में मुनि उत्कृष्ट काल प्रमाण रह चुका हो, वहाँ दो वर्ष का
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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