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________________ श्रमण का स्वरूप एवं उसके विविध पक्ष...43 तीर्थंकर पुरुषों द्वारा भी आचरणीय होता है। इस प्रकार करण सत्तरी में 4 प्रकार की पिण्डविशुद्धि + 5 समिति + 12 भावना + 12 प्रतिमा + 5 इन्द्रिय निरोध + 25 प्रतिलेखना + 3 गुप्ति + 4 अभिग्रह = 70 भेद होते हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में करण सत्तरी की उपादेयता साधु जीवन के मूल नियमों का अध्ययन करते हुए यदि करण सत्तरी का अनुशीलन किया जाए तो ज्ञात होता है कि इन नियमों का पालन विशेष परिस्थिति में किया जाता हैं। व्यक्तिगत जीवन में यदि इनके प्रभाव को देखा जाए तो पिण्डविशुद्धि के माध्यम से निर्दोष आहार, वस्त्र, पात्र एवं शय्या का ध्यान रखा जाता है तथा इनकी शुद्धता भाव विशुद्धि का कारण बनती है। पाँच समिति के पालन के माध्यम से कार्य में अप्रमत्तता, विवेकबुद्धि आदि को जागृत किया जा सकता है। बारह भावनाओं के चिन्तन के द्वारा विकट परिस्थितियों में भी आत्म समाधि एवं सद्भावों का विकास किया जा सकता है। पाँच प्रकार के इन्द्रिय निग्रह के द्वारा इन्द्रियों के तेईस विषयों पर नियन्त्रण करते हुए इन्द्रिय विजय की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है। भिक्षु की बारह प्रतिमाओं को धारण कर साधक विविध उपसर्गों को सहन करते हुए तथा विविध अभिग्रहों का पालन करते हुए अपने आपको कष्ट सहिष्णु बनाता है। पच्चीस प्रकार की प्रतिलेखना का पालन करने से सभी जीवों की जयणा के साथ स्वयं में निरीक्षण वृत्ति का विकास होता है तथा सावधानी पूर्वक उपयोग करने से स्वयं की तथा अन्य सूक्ष्म विषाक्त जीवों की रक्षा होती है। गुप्तित्रय की साधना के द्वारा साधक मन-वचन-काया की एकाग्रता साध सकता है। भिक्षा से सम्बन्धित चार अभिग्रहों के ग्रहण से व्यक्ति का संकल्पबल मजबूत होता है। यदि सामाजिक संदर्भ में करण सत्तरी की उपादेयता पर चिन्तन किया जाए तो पिण्डविशुद्धि के माध्यम से समाज में साध्वाचार का प्रसार होता है तथा साधु के विशुद्ध जीवन एवं नियम पालन की कटिबद्धता से समाज में भी मजबूती एवं दृढ़ता आती है। पाँच समिति के पालन से समाज को विवेकपूर्ण आचरण का सन्देश मिलता है। बारह भावना के चिन्तन एवं उपदेश आदि श्रवण से विरक्ति के भाव उत्पन्न होते हैं तथा संसार के सही स्वरूप का ज्ञान होता है।
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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