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________________ 36...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता वाले मनुष्य और तिर्यञ्च न हों तो देवतागण निश्चित रूप से सम्यक्त्व सामायिक स्वीकार करते हैं। जहाँ तक तीर्थस्थापना का प्रश्न है वह तो किसी भव्य जीव के द्वारा देशविरति या सर्वविरति चारित्र अंगीकार किये जाने पर ही होती है। व्रत स्वीकार के बिना तीर्थ स्थापना नहीं होती। यह समवसरण का संक्षिप्त स्वरूप समझना चाहिए। नन्दीरचना की प्रचलित विधि ___ आचार्य हरिभद्रकृत पंचाशक प्रकरण18 और आचार्य जिनप्रभरचित विधिमार्गप्रपा के अनुसार नन्दीरचना विधि का स्वरूप निम्नोक्त है - भूमिशुद्धि - सर्वप्रथम प्रशस्तक्षेत्र में आचार्य मुक्ताशुक्ति मुद्रा के द्वारा 'ऊँ ह्रीं वायुकुमारेभ्यः स्वाहा' इस मन्त्रोच्चारण से वायुकुमार देवों का आह्वान करें। उसके बाद वायुकुमार देव समवसरण की भूमि शुद्ध कर रहे हैं - ऐसी मानसिक कल्पना करते हुए श्रावकों के माध्यम से पूर्व निर्धारित क्षेत्र का परिमार्जन एवं जलसिञ्चन द्वारा शुद्धीकरण करवायें। __तदनन्तर पुन: आचार्य मुक्ताशुक्ति मुद्रापूर्वक 'ॐ ह्रीं मेघकुमारेभ्य: स्वाहा' इस मन्त्र से मेघकुमार देवों का आह्वान करें। उस समय पूर्ववत मानसिक कल्पना करते हुए उस शुद्ध भूमि पर श्रावकवर्ग के द्वारा सुगन्धित जल का छिड़काव करवायें। तत्पश्चात आचार्य मुक्ताशुक्ति मुद्रा के द्वारा 'ॐ ह्रीँ ऋतुदेवीभ्यः स्वाहा' इस मन्त्र से बसन्त, ग्रीष्म, शरद् आदि छ: ऋतुओं की देवियों को आमन्त्रित करें। उस समय पूर्ववत मानसिक संकल्पना करते हुए श्रावकों के द्वारा उस भूमि पर सुगन्धित पंचवर्णी पुष्पों की वृष्टि करवायें। धूपोत्क्षेपण - उसके बाद आचार्य पूर्ववत मुक्ताशुक्ति मुद्रा के द्वारा 'ॐ ही अग्निकुमारेभ्य: स्वाहा' इस मन्त्र से अग्निकुमार देवताओं का आह्वान करें। तब श्रावकगण दशांग धूप या अगरबत्ती जलाएँ। कुछ विद्वानों के अनुसार किसी देवता विशेष का नाम लिए बिना सर्वसामान्य देवताओं का आह्वान करके धूप खेना चाहिए। प्राकार रचना - तदनन्तर आचार्य पूर्ववत मुद्रा करके 'ॐ ह्रीं वैमानिकज्योतिषी- भवनवासी देवेभ्यः स्वाहा' इस मन्त्र से वैमानिक (सौधर्मादि) ज्योतिष (चन्द्रादि) एवं भवनवासी (असुरादि) देवताओं को आमन्त्रित करें। उस समय
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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