SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 14... जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता के लक्षण अध्याय-4 में कहेंगे। गुरु दिगम्बर-साहित्य में क्षुल्लक पदारूढ़ श्रावक किन गुणों से युक्त होना चाहिए, इसका स्पष्ट उल्लेख प्राप्त नहीं हो पाया है। यद्यपि वह ग्यारहवीं प्रतिमा का धारक होने से व्रत, नियम, सामायिक, पौषध, सचित्त वर्जन, रात्रिभोजन त्याग, अहिंसक प्रवृत्ति आदि धार्मिक क्रियाओं का अनुपालन करने वाला होता है। उनमें यह विधि मुनि अथवा भट्टारक द्वारा करवायी जाती है। क्षुल्लकत्व दीक्षा हेतु काल विचार श्वेताम्बर-साहित्य में यह वर्णन आचारदिनकर में प्राप्त होता है। तदनुसार मुनि दीक्षा के लिए प्रशस्त तिथि, वार, लग्न एवं नक्षत्र का योग होने पर क्षुल्लक दीक्षा प्रदान करना चाहिए ।' दीक्षा मुहूर्त का वर्णन अध्याय - 4 में किया गया है। दिगम्बर-साहित्य में इस विषयक लगभग कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं है। क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण - विधि आचारदिनकर में प्रतिपादित क्षुल्लकदीक्षा की विधि निम्न प्रकार है - क्षुल्लकदीक्षा ग्रहण करने का इच्छुक लग्नदिन में मस्तक का मुण्डन करवाकर एवं दैहिक शुद्धि करके शिखा तथा उपवीत धारण करें। दीक्षास्थल पर नन्दीरचना करें | उद्देशविधि – तत्पश्चात नन्दीस्थल पर गुरु के बायीं ओर उपस्थित होकर ईर्यापथ प्रतिक्रमण करें। फिर व्रतग्राही एक खमासमणसूत्र द्वारा वन्दन करके कहे - "भयवं इच्छाकारेण तुब्भे अम्हं पंचमहव्वयाणं अवहि आरोपणं उद्दिसह” हे भगवन्! आपकी इच्छा हो, तो आप मुझे एक अवधि विशेष के लिए पंचमहाव्रतों को स्वीकार करने की अनुमति प्रदान करें। गुरु कहे 'आदिसामि' मैं अनुमति देता हूँ। उसके बाद क्षुल्लक के नाम आदि के उच्चारणपूर्वक वासग्रहण, चैत्यवन्दन (दस अथवा अठारह स्तुतियों पूर्वक देववन्दन), कायोत्सर्ग आदि क्रियाएँ सम्यक्त्वव्रतारोपण के समान करें। स्पष्टबोध के लिए सामान्य उल्लेख इस प्रकार है वासदान- व्रतग्राही एक खमासमण द्वारा वन्दन करके कहे - "इच्छाकारेण तुब्भे अम्हं पंचमहव्वयाणं अवहि आरोवणियं नंदिकड्ढावणियं वासक्खेवं करेह" - हे भगवन् ! आप स्वेच्छा से मुझे एक अवधि विशेष के लिए पंचमहाव्रतों के आरोप हेतु वासदान करें। तब गुरु
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy