SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ब्रह्मचर्य व्रतग्रहण विधि का मार्मिक विश्लेषण ... 5 सम्यक्त्वसामायिक एवं गृहस्थ के व्रतारोपण की भांति ही करवायें। यह विधि तीसरे खण्ड के अध्याय 2-3 में उल्लिखित हैं। • पूर्व क्रिया से निवृत्त होने के पश्चात गुरु श्रावक को व्रतदान दिलवाने के निमित्त तीन बार नमस्कारमन्त्र का उच्चारण करें। तदनन्तर तीन बार निम्न दण्डक बोलकर प्रत्याख्यान करवाएँ। उस समय व्रतग्राही श्रावक भी अर्धावनत मुद्रा में स्थित होकर तीन बार नमस्कारमन्त्र के स्मरणपूर्वक व्रतदण्डक को ग्रहण करें। ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण का पाठ निम्न है "करेमि भंते सामाइयं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि जाव नियम पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि आपाणं वोसिरामि। सव्वं मेहणं पच्चक्खामि जाव नियमं पज्जुवासामि दविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते पडिक्कमामि निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।" __ अर्थ- हे भगवन्! मैं सामायिक व्रत ग्रहण करता हूँ, अत: पापजन्य प्रवृत्ति का प्रतिज्ञापूर्वक त्याग करता हूँ। जब तक मैं इस नियम का पालन करता रहूँगा, तब तक मन, वाणी और शरीर - इन तीन योगों से पाप व्यापार को न करूँगा, न कराऊँगा। हे भगवन्! पूर्वकृत पापजन्य प्रवृत्तियों से मैं निवृत्त होता हूँ, उसकी निन्दा करता हूँ, उसकी भर्त्सना करता हूँ एवं उसके प्रति रही हुई आसक्ति का त्याग करता हूँ। पुनः इस नियम का पालन करते हुए सर्व प्रकार से मैथुन का त्याग करता हूँ। जब तक इस नियम का पालन करता रहूंगा तब तक मन, वचन और काया- इन तीन योगों से न स्वयं मैथुन सेवन करूँगा, न किसी अन्य से मैथुन सेवन कराऊँगा। हे भगवन्! पूर्वकृत मैथुन संज्ञक प्रवृत्तियों से मैं निवृत्त होता हूँ, उसकी निन्दा करता हूँ, उसकी गर्दा करता हूँ एवं उसके प्रति रही हुई आसक्ति का त्याग करता हूँ। इस प्रकार व्रत दिलवाने के पश्चात 'नित्थारग पारगा होहि'- संसार सागर से पार होओ यह कहते हुए गुरु एवं उपस्थित संघ व्रतग्राही के मस्तक पर वासचूर्ण का क्षेपण करें। • तत्पश्चात गुरु आसन पर बैठकर ब्रह्मचर्य व्रतधारी श्रावक को सम्यक् शिक्षण दें। जैसे इस व्रत का पालन करते हुए स्त्रीकथा नहीं करना, नपुंसक,
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy