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________________ उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 253 (आदिपुराण, पर्व 39, पृ. 276) में उत्कृष्ट चारित्रवान मुनि को इस विधान का योग्याधिकारी माना है। श्वेताम्बर परम्परा में उपस्थापना करते समय पाँच महाव्रतों एवं छठे रात्रि भोजन-त्यागव्रत की प्रतिज्ञा दिलवायी जाती है। जबकि दिगम्बर परम्परागत आदिपुराण (पर्व 39, पृ. 276) के निर्देशानुसार प्रव्रज्या इच्छुक को लिंगदान के पश्चात पंचमहाव्रत, पांच समिति, पांच इन्द्रियों का नियन्त्रण, भू-शयन आदि उत्तरगुणों का भी आरोपण करवाया जाता है। यदि उपस्थापना विधि की तुलना बौद्ध-परम्परा के परिप्रेक्ष्य में की जाये तो उनके वहाँ मान्य दस भिक्षु शील जैन-परम्परा के पंचमहाव्रतों के अत्यधिक निकट हैं। वे दस शील हैं - 1. प्राणातिपात विरमण, 2. अदत्तादान विरमण, 3. अब्रह्मचर्य या कामेसु मिच्छाचार विरमण, 4. मूसावाद (मृषावाद) विरमण, 5. सुरामेरयमद्य (मादकद्रव्य) विरमण, 6. विकाल भोजन विरमण, 7. नृत्यगीतवादिंत्र विरमण, 8. माल्यधारण, गन्धविलेपन विरमण, 9. उच्चशय्या, महाशय्या विरमण, 10. स्वर्ण-रजत ग्रहण विरमण|218 इनमें से छह शील पंचमहाव्रत और रात्रिभोजन परित्याग के रूप में जैनपरम्परा में भी स्वीकृत हैं। शेष चार भिक्षु शील भी जैन-परम्परा में स्वीकृत हैं यद्यपि महाव्रत के रूप में इनका उल्लेख नहीं है तथापि भिक्षु के लिए मद्यपान, माल्य धारण, गन्ध विलेपन, नृत्यगीतवादिंत्र एवं उच्चशय्या का वर्जन किया गया है। यदि थोड़ी गहराई से दोनों परम्पराओं की समरूपता को देखने का प्रयास किया जाय तो यह कहना होगा कि जैन-परम्परा के महाव्रतों और बौद्ध-परम्परा के भिक्ष-शीलों में न केवल बाह्य शाब्दिक समानता है वरन् दोनों की मूलभूत भावना भी समान है। ___ यदि उपस्थापना विधि का तुलनात्मक पक्ष वैदिक परम्परा के सन्दर्भ में उजागर किया जाये तो जैन परम्परा के पंचमहाव्रत के समान ही वैदिक-परम्परा में पंचयम स्वीकार किये गये हैं। पातञ्जल योगसूत्र में निम्न पंच यम माने गये हैं-219 1. अहिंसा, 2. सत्य, 3. अस्तेय, 4. ब्रह्मचर्य और 5. अपरिग्रह। इन्हें महाव्रत भी कहा गया है। जिस प्रकार जैन परम्परा में सर्वविरति चारित्र की प्राप्ति हेतु पंचमहाव्रत
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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