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________________ 212...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता 5. साधर्मिकों से साधारण भक्तपान विनयप्रयोग अनुवीचिमिता वग्रहयाचन अनुज्ञाप्य परिभोग 4. ब्रह्मचर्य महाव्रत की भावनाएँ 1. अभीक्ष्ण स्त्रीकथा-वर्जन स्त्री, पशु और नपुंसक से असंसक्त वास-वसति संसक्त शयन और आसन का वर्जन 2. स्त्रियों के इन्द्रियों के स्त्री-कथा का विसर्जन स्त्रियों की सभा और ___ अवलोकन का वर्जन कथा वर्जन 3. पूर्व भुक्त भोग-पूर्वक्रीड़ा स्त्रियों की इन्द्रियों के स्त्रियों के अंगकी स्मृति का वर्जन अवलोकन का वर्जन प्रत्यंगों और चेष्टाओं के अवलोकन का वर्जन 4. अतिमात्र पानभोजन और पूर्वभुक्त व पूर्वक्रीडित पूर्वभुक्तभोग की प्रणीत रस भोजन का कामभागों की स्मृति का स्मृति का वर्जन वर्जन 5. स्त्री, पशु और नपुंसक से प्रणीत आहार का प्रणीत रसभोजन का संसक्त शयनासन का विवर्जन वर्जन वर्जन 5. अपरिग्रह महाव्रत की भावनाएँ 1. मनोज्ञ-अमनोज्ञ शब्द में श्रोत्रेन्द्रिय राग-उपरति मनोज्ञ-अमनोज्ञ शब्द में अनासक्त समभाव 2. मनोज्ञ-अमनोज्ञ रूप में चक्षुरिन्द्रिय रागोपरति मनोज्ञ-अमनोज्ञ रूप में अनासक्त समभाव 3. मनोज्ञ-अमनोज्ञ गन्ध में घ्राणेन्द्रिय रागोपरति मनोज्ञ-अमनोज्ञ गन्ध में अनासक्त समभाव 4. मनोज्ञ-अमनोज्ञ रस में रसनेन्द्रिय रागोपरति मनोज्ञ-अमनोज्ञ रस में अनासक्त समभाव 5. मनोज्ञ-अमनोज्ञ स्पर्श में स्पर्शनेन्द्रिय रागोपरति मनोज्ञ-अमनोज्ञ स्पर्श में अनासक्त समभाव वर्जन
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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