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________________ 210...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता ___ 1. मनोज्ञ (अनुकूल)-अमनोज्ञ (प्रतिकूल) श्रोत्रेन्द्रिय का संवर करना अर्थात अच्छे-बुरे शब्द सुनकर प्रियता-अप्रियता के भाव नहीं लाना। 2. मनोज्ञ- अमनोज्ञ चक्षुरिन्द्रिय का संवर करना अर्थात सुन्दर-असुन्दर पदार्थों को देखकर राग-द्वेष के भाव नहीं लाना। ___ 3. मनोज्ञ- अमनोज्ञ घ्राणेन्द्रिय का संवर करना अर्थात सुगन्ध के प्रति लुभाना नहीं और दुर्गन्ध के प्रति घृणा नहीं करना। 4. मनोज्ञ- अमनोज्ञ रसनेन्द्रिय का संवर करना अर्थात खट्टे-मीठे, कड़वेकषैले सभी प्रकार के खाद्य पदार्थों के प्रति समत्व भाव रखना। 5. मनोज्ञ- अमनोज्ञ स्पर्शेन्द्रिय का संवर करना अर्थात शीत-उष्ण, स्निग्ध-रुक्ष, कर्कश-कोमल, गुरु-लघु समस्त प्रकार के स्पर्श की स्थिति में समभाव रखना। __ ये भावनाएँ अपरिग्रह महाव्रत को परिपुष्ट करती हैं। साधक के अन्तर्मानस में परिग्रह के प्रति जो आकर्षण बना रहता है वह इन भावनाओं का सतत चिन्तन करने से मन्दतम हो जाता है। परिणाम स्वरूप देहासक्ति भी घट जाती है। अपरिग्रह महाव्रत के अतिचार ___ इस महाव्रत में सूक्ष्म और बादर दो प्रकार के अतिचार लगते हैं। शय्यातर के मकान की गाय-कुत्ता आदि से सुरक्षा करना तथा गृहस्थ बालकों के प्रति किञ्चिद् ममत्व भाव रखना सूक्ष्म अतिचार है तथा लोभवश धन आदि वस्तुओं का संग्रह करना बादर अतिचार है। आचार्य हरिभद्र के अनुसार पुस्तक आदि के सिवाय अधिक उपधि रखना भी बादर अतिचार है।120 निष्कर्ष - यदि पूर्व विवेचन के आधार पर समीक्षात्मक अध्ययन करें तो यह निश्चित होता है कि पंच महाव्रत एवं उनकी पच्चीस भावनाओं का स्वरूप आगमिक एवं आगमेतर साहित्य में स्पष्टता के साथ उपलब्ध है। यदि पाँच महाव्रतों की तुलना की जाए तो वहाँ पूर्ववर्ती एवं परवर्ती ग्रन्थों में इनके नाम लगभग समान हैं। यद्यपि पंच महाव्रत-सम्बन्धी भावनाओं के शब्द एवं क्रम में कहीं कुछ भिन्नता है। आचारचूला'21 समवायांग122 और प्रश्नव्याकरण 23 में उल्लिखित पाठ भेद इस प्रकार है
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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