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________________ 206...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता 1. ज्ञानोपधि - शास्त्र, पुस्तक आदि। 2. संयमोपधि - मोर के पंखों से बनी पिच्छि। 3. शौचोपधि - शरीर शुद्धि के लिए जल ग्रहण करने का पात्र या कमण्डलु।112 इस परम्परा में मुनि को वस्त्र आदि अन्य सामग्री रखने का निषेध है। श्वेताम्बर-परम्परा के मूल आगमों के अनुसार श्रमण चार प्रकार की वस्तुएँ रख सकता है113- 1. वस्त्र 2. पात्र 3. कम्बल और 4. रजोहरण। आचारांगसूत्र के अनुसार स्वस्थ मुनि एक वस्त्र रख सकता है, साध्वियों को चार वस्त्र रखने का विधान है।114 प्रश्नव्याकरण में मुनि के लिए चौदह प्रकार के उपकरणों का निर्देश है ___ 1. पात्र - लकड़ी, मिट्टी या तुम्बी निर्मित। 2. पात्रबन्ध - पात्रों को बांधने का कपड़ा। 3. पात्र स्थापना - पात्र रखने का कपड़ा। 4. पात्र केसरिका - पात्र पोछने का कपड़ा। 5. पटल - पात्र ढकने का कपड़ा। 6. रजस्त्राण 7. गोच्छक 8-10. प्रच्छादक - अलग-अलग नाप की तीन ओढ़ने की चद्दर। 11. रजोहरण 12. मुखवस्त्रिका 13. मात्रक और 14. चोलपट्ट।115 उक्त चौदह वस्तुएँ श्वेताम्बर मुनि की अपेक्षा से आवश्यक कही गयी हैं क्योंकि इन्हें संयम पालन में सहायक माना है। बृहत्कल्पभाष्य और परवर्ती ग्रन्थों में उपर्युक्त सामग्रियों के अतिरिक्त चिलमिलिका (पर्दा), दण्ड, छाता, पादपोंछन आदि अनेक वस्तुओं के रखने का प्रावधान भी है। अपरिग्रह महाव्रत की आराधना का फल __परिग्रह का संग्रह सुख-स्पृहा के उद्देश्य से किया जाता है। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि जो जीव सुख-स्पृहा का निवारण करता है वह विषयों के प्रति अनुत्सुक-भाव को प्राप्त करता है। विषयों के प्रति उदासीन होने पर अनुकम्पा गुण वाला, प्रशान्त चित्त वाला और शोक मुक्त जीवन का आनन्द लेने वाला बनता है और अन्तत: चारित्र को विकृत करने वाले मोह कर्म का क्षय कर देता है। मोह कर्म के क्षय से केवलज्ञान, केवलदर्शन को समपलब्ध कर लेता है।116 अपरिग्रही साधक के लिए इन्द्रिय और मन को विषयों से दूर रखना अत्यावश्यक माना गया है। यही वजह है कि इस व्रत की पाँचों भावनाएँ पाँच
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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