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________________ 200...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता जैन आचार-दर्शन के अनुसार साधक का ब्रह्मचर्यव्रत अक्षुण्ण रह सके, इस सन्दर्भ में श्रमण और श्रमणी के पारस्परिक व्यवहार सम्बन्धी कुछ नियम यहाँ उल्लेखनीय हैं - 1. उपाश्रय या मार्ग में एकाकी मुनि किसी साध्वी या स्त्री के साथ न बैठे, न खड़ा रहे और न उससे बातचीत ही करे। 2. अकेला मुनि दिन में भी किसी अकेली साध्वी या स्त्री को अपने आवासस्थान पर न आने दे। 3. यदि श्रमण समुदाय के पास कोई साध्वी या स्त्री ज्ञानप्राप्ति के निमित्त आयी हो तो किसी प्रौढ़ गृहस्थ की उपस्थिति में ही उसे ज्ञानार्जन करावे। 4. प्रवचनकाल या वाचनाकाल के अतिरिक्त साध्वियाँ या स्त्रियाँ मुनि के उपाश्रय में न ठहरें। 5. श्रमण एक दिन की बालिका का भी स्पर्श न करे। 6. जहाँ गुरु अथवा वरिष्ठ मुनि शयन करते हों, सहवासी शिष्यगण उसी स्थान पर शयन करें, एकान्त में नहीं सोयें। इसी प्रकार जैन आचार विधि में ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए कठोरतम नियमों एवं मर्यादाओं का प्रावधान है।96 ब्रह्मचर्य के विघातक तत्त्व प्रश्नव्याकरणसूत्र के अनुसार ब्रह्मचर्य अनुपालक को निम्नलिखित चेष्टाएँ नहीं करना चाहिए - विषयराग करना, प्रमाद सेवन करना, घृतादि की मालिश करना, तेल लगाकर स्नान करना, बार-बार हाथ, पैर, मुँह धोना, पैर आदि दबाना, विलेपन करना, सुगन्धित चूर्ण से शरीर को सुवासित करना, अगर आदि का धूप देना, शरीर को मण्डित करना, सुशोभित बनाना, नखों, केशों व वस्त्रों को संवारना, हंसी ठट्टा करना, विकारयुक्त भाषण करना, नाट्यवादिंत्र-नटों-नृत्यकारों का खेल देखना आदि।97 ब्रह्मचर्य के सहायक तत्त्व ब्रह्मचर्यव्रत के सम्यक् परिपालनार्थ कुछ नियम आवश्यक माने गये हैं। प्रश्नव्याकरणसूत्र के अनुसार ब्रह्मव्रती को स्नान नहीं करना, दन्त धावन नहीं करना, मैल नहीं उतारना, मौन व्रत रखना, केशों का लुञ्चन करना, क्षमा धारण करना, इन्द्रिय निग्रह करना, भूख-प्यास सहना, सर्दी-गर्मी सहना, काष्ठ की शय्या पर सोना, भिक्षादि के लिए ही गृहस्थ के घर जाना, अन्य हेतु से नहीं, आहारादि की प्राप्ति न होने पर समभाव रखना, मान-अपमान, निन्दा-प्रशंसा के परीषहों में तटस्थ रहना, द्रव्यादि की मर्यादा करना, विनयादि गुणों में वृद्धि
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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