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________________ 180...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता श्रमण के लिए वर्जित माना गया है। सत्य और व्यावहारिक भाषा भी यदि पाप और हिंसा की सम्भावना से युक्त हो तो वह भी जैन मुनि के लिए निषिद्ध है। दशवैकालिकसूत्र का सुवाक्यशुद्धि नामक आठवाँ अध्याय इसी विषय से सम्बन्धित है।5 इस आगम के अनुसार मुनि न बोलने योग्य सत्य भाषा भी न बोले। जो भाषा थोड़ी सत्य और थोड़ी असत्य (नरो वा कुंजरो वा) हो, ऐसी मिश्र भाषा का प्रयोग भी संयमी साधु न करे। जो भाषा पाप रहित, अकर्कश एवं सन्देह रहित हो वह भी विचारपूर्वक बोले। इसी प्रकार जैन मुनि निश्चयकारी वचन भी न बोले। पारिवारिक सम्बन्धों के सूचक शब्द जैसे – माता, पिता, पति, पुत्र आदि, अपमानजनक शब्द जैसे - मूर्ख, पागल आदि का भी प्रयोग न करे। जिस भाषा से हिंसा की सम्भावना हो, ऐसी भाषा का प्रयोग भी न करे। इस तरह जैन श्रमण के लिए असत्य और अप्रिय सत्य दोनों का निषेध है। दुनियाँ का समस्त व्यवहार भाषा पर आधारित है। सामान्य व्यक्तियों के लिए भी भाषा का सम्यक् प्रयोग करना आवश्यक होने से तथा व्यक्ति के विकास-ह्रास, सुख-दुःख आदि प्रवृत्तियों में भाषा की मुख्य भूमिका होने से भी इस पर कुछ गहराई से चिन्तन किया जाना चाहिए। (i) सत्य भाषा - दशवैकालिकनियुक्ति में सत्य भाषा के दस प्रकार कहे गये हैं जो निम्न हैं56 - __1. जनपद सत्य - जिस देश में जिस वस्तु के लिए जिस शब्द का प्रयोग होता हो, वह शब्द उस देश की अपेक्षा सत्य माना जाता है। उदाहरणार्थ - कोंकण देश में पानी को 'पिच्च' कहा जाता है। यदि उस देश की अपेक्षा से यहाँ भी पानी को पिच्च कहा जाये तो वह सत्य है। इसकी सत्यता का आधार है आशय शुद्धि एवं व्यवहार प्रवृत्ति। ___ 2. सम्मत सत्य - जो वचन सर्व सम्मत हो जैसे सूर्य विकासी, चन्द्र विकासी आदि। सभी कमल कीचड़ में पैदा होते हैं, किन्तु पंकज शब्द का प्रयोग अरविन्द के लिए ही होता है। अत: पंकज शब्द का प्रयोग अरविन्द के लिए सत्य है और कुवलयादि के लिए असत्य है। 3. स्थापना सत्य - आकृति विशेष को देखकर उसके लिए शब्द विशेष का प्रयोग करना स्थापना सत्य है जैसे एक संख्या के आगे दो बिन्दु (100) लगे
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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