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________________ उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 179 को बताया है। 48 उपनिषदकार का मन्तव्य है कि सत्य से आत्मा उपलब्ध होता है।49 सत्य आत्म-साक्षात्कार का साधन है, आत्मानुभूति का हेतु है, सत्य कष्टों को दूर करता है, धर्म की जड़ सत्य पर आधारित है। भारत की शासकीय मुद्रा पर 'सत्यमेव जयते' अंकित है। हर धार्मिक स्थल पर सत्य बोलने की प्रेरणा दी जाती है। - पाश्चात्य दार्शनिक आर. डब्ल्यू. एमर्सन ने एक बार कहा था सत्य का सर्वश्रेष्ठ अभिनन्दन यही है कि हम जीवन में उसका आचरण करें 150 महात्मा गांधी ने भी स्पष्ट शब्दों में कहा - जो व्यक्ति सत्य को जानता है, मन, वचन, काया से सत्य का आचरण करता है, वह परमात्मा को पहचानता है। 51 एक चिन्तक ने लिखा है - मानव जीवन की नींव सत्य पर अवलम्बित है। सत्य सम्पूर्ण जीवन और सृष्टि का एक मात्र आधार है। महाभारत में बताया गया है कि जिस प्रकार नौका के सहारे से व्यक्ति विशाल समुद्र को पार कर जाता है उसी प्रकार मानव सत्य के सहारे नरक - क- तिर्यञ्च के अपार दुःखों को पार कर स्वर्ग प्राप्त कर लेता है। 52 सत्य दुर्गुणों को दूर करने वाला मरहम है । यह अनुभव सिद्ध है कि जब तक शरीर में उष्मा रहती है तब तक शरीर पर मक्खी मच्छर आदि बैठ जायें तो शरीर उसे सहन नहीं कर पाता, जबकि निश्चेष्ट होने के बाद शरीर का कुछ भी कर दिया जाये, उसे पता ही नहीं लगता है । उसी प्रकार साधक के जीवन में भी जब तक सत्य की उष्मा रहती है तब तक कोई भी दुर्गुणरूपी मक्खीमच्छर उसे बर्दाश्त नहीं होता है। 53 सत्य का उपासक स्वयं की कमजोरियों को सुधारने हेतु सदैव उद्यमशील रहता है एतदर्थ सत्य को स्वयम्भू, सर्वशक्तिमान् और स्वतीर्थगुप्त (रक्षित) कहा गया है । सत्य अपूर्व बल का द्योतक है। इसीलिए कहते हैं - 'सत्य में हजार हाथियों के बराबर बल होता है । ' सारांश रूप में सत्य सभी सद्गुणों का जनक है, नैतिक विकास का मूल मन्त्र है, मानवीयता को अखण्डित बनाये रखने हेतु सुदृढ़ कवच है । भाषा के प्रकार जैन आगमकारों ने भाषा के चार प्रकार बतलाये हैं- 1. सत्य, 2. असत्य, 3. मिश्र और 4. व्यावहारिक 54 इनमें असत्य और मिश्र भाषा का व्यवहार
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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