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________________ 146...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता किया गया है। यही वजह है कि दीक्षाग्रहण के दिन भी केशलोच ही किया जाता है जबकि शेष परम्पराओं में नापित द्वारा केशमुण्डन होता है। केशलुंचन से होने वाले लाभ आचार्य जिनचन्द्रसूरि रचित संवेगरंगशाला में केशलुंचन के कई लाभ इस प्रकार प्रतिपादित हैं? 1. इससे महासात्विकता प्रकट होती है। 2. तीर्थङ्कर परमात्मा की आज्ञा का अनुपालन होता है। 3. तीर्थङ्कर की आज्ञा का अनुगमन करने से उनका बहुमान होता है। 4. कष्ट अथवा पीड़ा सहन करने की क्षमता प्रकट होती है। 5. नरकादि कष्टों का स्मरण करने से निर्वेद गुण प्रकट होता है। 6. स्वयं की सहनशीलता की परीक्षा होती है। 7. सहनशीलता में सफल होने पर धर्म के प्रति श्रद्धा होती है। 8. सुखशीलता का त्याग होता है। 9. क्षुरकर्म के द्वारा होने वाले पुर:कर्म एवं पश्चातकर्म के दोषों से साधक बच जाता है। 10. शारीरिक ममत्व बुद्धि अल्प होकर निर्ममत्व की साधना विकसित हो जाती है। 11. शरीर शोभा का त्याग होता है। 12. निर्विकार गुण प्रकट होता है। 13. क्षुधा, मल, अज्ञान आदि बाईस परीषहों को सहन करने की क्षमता भी पैदा हो जाती है और 14. आत्मा का दमन होता है। इस प्रकार लोच करने-करवाने वाला मुनि विविध गुणों से लाभान्वित होता है। केशलुंचन न करने से लगने वाले दोष ___ संवेगरंगशाला के अनुसार केशलोच न करने पर निम्नोक्त दोषोत्पत्तियाँ होती हैं 1. जैन मुनि देहशुद्धि नहीं करते हैं उनका शरीर स्वेदमलादि से युक्त होता है और हवादि से सूख भी जाता है। मैल भी खिर जाता है, किन्तु केश पसीने से गीले रहते हैं तो उसमें मैल जमता रहता है और उस स्थिति में षट्पद जीवोंजूं, लींख आदि के उत्पन्न होने की पूर्ण सम्भावना रहती हैं। अत: मुनि को किसी भी परिस्थिति में लम्बे केश रखना उचित नहीं है। 2. सिर पर मल और जूं के संयोग से खुजली उत्पन्न होती है और बारबार खुजली करने से जूएँ- लींख आदि मर जाती हैं अथवा उन्हें परिताप पहुँचता है। इस प्रकार अहिंसाव्रत दूषित एवं खण्डित हो जाता है।
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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