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________________ मण्डली तप विधि की तात्त्विक विमर्शना... 139 यहाँ यह प्रश्न उपस्थित हो सकता है कि मण्डली में प्रवेश देने हेतु तप क्यों जरूरी है? इसके समाधान में यह कहा जा सकता है कि जैसे बालक को पाठशाला में प्रवेश दिलवाने से पूर्व शुल्क जमा करना जरूरी है, सुयोग्य गृहिणी बनने के लिए गृह कार्यों में निपुण बनना एवं उस योग्यता को अर्जित करने हेतु पूर्वाभ्यास करना आवश्यक है, श्रेष्ठ व्यापारी बनने के लिए उस तरह का शिक्षण प्राप्त करना अनिवार्य है, वैसे ही मनि जीवन की विशिष्ट योग्यता पाने हेतु तप साधना का उपक्रम अत्यावश्यक है। दूसरा तथ्य यह है कि डॉक्टर, इंजीनियर, अध्यापक जैसे सामान्य पद भी बिना श्रम या पुरुषार्थ के प्राप्त नहीं होता तब मुनि संघ की सदस्यता बिना किसी विशिष्ट साधना के कैसे प्रदान की जा सकती है ? तपश्चरण एक विशिष्ट साधना का अंग है। इसे मण्डली प्रवेश का शुल्क भी कह सकते हैं। तीसरा महत्त्वपूर्ण हेतु यह है कि इस तपश्चरण के द्वारा विशिष्ट योग्यताएँ भी हासिल होती है क्योंकि मण्डली प्रवेश योग्य मुनि को ही दिया जाता है और वही मुनि चारित्र धर्म का विस्तार कर सकता है। यह युक्तिसंगत भी है, क्योंकि योग्य व्यक्ति के हाथ में दिये गये धन का सदुपयोग ही नहीं अपितु उसका सहस्रगुणा विस्तार भी होता है। चारित्र धर्म की परम्परा को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए भी यह तपोविधान परमावश्यक मालूम होता है। आचार्यों की दृष्टि में इसका उद्देश्य चारित्र धर्म का विकास करना है। इसे श्रमण जीवन का प्रथम सोपान कहा जा सकता है। इसके अंतर्गत नव दीक्षित मुनि को यह प्रबोध दिया जाता है कि वह श्रमण मंडल के साथ आराधनारत रहते हुए अहंकार-आग्रह आदि बुराइयों का त्याग करें, विनय, नम्रता, सरलता आदि गुणों को अपनाए। मुनि जीवन की विशिष्ट योग्यता पाने के लिए तप साधना का उपक्रम आवश्यक माना गया। सन्दर्भ-सूची 1. प्रव्रज्यायोगविधि, पृ. 77-120. 2. तत्तो य कारविज्जइ, तहाणुरूवं तवोवहाणं तु। आयंबिलाणि सत्त उ, किल निअमा मंडलि पवेसो।। पंचवस्तुक, गा. 674
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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