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________________ अध्याय-5 मण्डली तप विधि की तात्त्विक विमर्शना जैन धर्म की प्राय: सभी परम्पराओं में सामूहिक अनुष्ठान को श्रेष्ठ माना गया है। इसके पीछे यह अभिप्रेत है कि सामूहिक आराधना से भावोल्लास में अनन्तगुणा वृद्धि होती है और एक-दूसरे को देखकर अरुचिवन्त साधक भी उद्यम परायण हो जाते हैं। अनेक आराधकों के मुख से एक साथ उच्चरित हो रहे सूत्र पाठ या स्तवन आदि को सुनकर क्रिया के प्रति स्वत: तन्मयता बढ़ जाती है। इससे वातावरण शान्त होता है फलत: चित्त की स्थिरता एवं मन की एकाग्रता बढ़ती है और वचन का संयम हो जाता है। बृहद् अनुष्ठानों को देखकर दर्शकगण भी उसके प्रति अनायास आकृष्ट होकर चले आते हैं अत: सामूहिक आराधना विविध दृष्टियों से लाभदायी है। जैन गृहस्थ के लिए मण्डली तप के सम्बन्ध में किसी प्रकार का कोई प्रावधान नहीं है। वह प्रत्येक धर्म आयोजनों में बिना किसी रुकावट के सम्मिलित हो सकता है। केवल मार्गानुसारी के 35 गुणों से युक्त होना आवश्यक है जबकि जैन श्रमण के लिए कुछ विशिष्ट संविधान बनाये गये हैं। यदि एक साधु को अन्य साधु के साथ या समूह के साथ प्रतिक्रमण आदि आवश्यक कृत्य सम्पन्न करने हों तो उसके लिए एक बार तप करना जरूरी होता है। उसके बिना सामूहिक क्रियाकलापों में उसे अनुमति नहीं दी जाती। ___ मूलत: साधु जीवन से सम्बन्धित सात क्रियाएँ सामूहिक रूप से की जाती हैं, अत: मण्डली सात प्रकार की कही गई है। मण्डली का अर्थ एवं उसके प्रकार ___ मण्डली का सामान्य अर्थ है - समूह, समुदाय। यह समूह वाचक शब्द है। यहाँ मण्डली से तात्पर्य मुनियों का समूह या मुनियों का समुदाय है। ____पंचवस्तुक, प्रवचनसारोद्धार, विधिमार्गप्रपा आदि ग्रन्थों के अनुसार सात प्रकार की मण्डली के नाम इस प्रकार हैं - 1. सूत्र मण्डली 2. अर्थ मण्डली
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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