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________________ 124...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के..... 82. दीक्षा-बड़ी दीक्षादि विधि संग्रह, पृ. 1-9 83. (क) श्रमणाचार, पृ. 338-346 (ख) अनगारधर्मामृत, 9/83 84. जैन एवं बौद्ध शिक्षा दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन, पृ. 183 85. (क) वही, पृ. 183 (ख) विनयपिटक, राहुल सांकृत्यायन, पृ. 123 86. (क) जैन एवं बौद्ध शिक्षा दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन, पृ. 183 (ख) विनयपिटक, राहुल सांकृत्यायन, पृ. 123-124 87. जैन और बौद्ध भिक्षुणी संघ, डॉ. अरुणप्रताप सिंह, पृ. 136 88. धर्मशास्त्र का इतिहास, भा. 1, पृ.491 89. (क) पंचवस्तुकभाष्य, गा. 132 (ख) विशेषावश्यक, गा. 3405 90. पंचवस्तुक, गा. 133 91. षोडशकप्रकरण, 12/8 92. वही, 12/9 93. वही, 12/10 94. (क) द्वात्रिंशत्द्वात्रिंशिका, 28/4 (ख) प्राचीनसामाचारी, पृ. 14 95. षोडशकप्रकरण, 12/7 96. पंचवस्तुक, गा. 164-177 97. धम्मपद, 264-65 उद्धृत- जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन भा.2, पृ. 327 - 98. जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, भा. 2, पृ. 327
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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