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________________ 100... जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के ...... पूर्वक गुरु को तथा अन्य मुनियों को वन्दन कर बैठ जाये। उसके बाद दीक्षादानी गृहस्थजन नूतन मुनि के आगे उत्तम फल चढ़ायें और 'नमोऽस्तु' कहकर उन्हें प्रणाम करें। दीक्षा के अनन्तर मुनि के अट्ठाईस मूलगुणों को धारण करने की प्रतिज्ञा या संकल्प दिलवाया जाता है। इसी के साथ चौरासी लाख गुणों और अठारह हजार शील रूप उत्तर गुणों का आरोपण किया जाता है। दिगम्बर अनगारधर्मामृत के मतानुसार मुनि द्वारा आचरणीय 28 मूलगुण निम्न हैं 1-5. पाँच महाव्रत, 6-10. पाँच समिति, 11-15. पाँच इन्द्रियों को वश में रखना, 16. भूमि पर शयन करना, 17. दन्त धावन नहीं करना, 18. खड़े होकर भोजन करना, 19. दिन में एक बार भोजन करना, 20. केशलोच करना, 21-26. छह आवश्यक का पालन करना, 27. वस्त्र पात्र का त्याग करना और 28. स्नान नहीं करना । — पिच्छिका आदि उपकरण निम्न मन्त्रों से अभिमन्त्रित करते हैं पिच्छिकादानमन्त्र - ॐ नमो अरहंताणं भो अन्तेवासिन् ! षड्जीवनिकायरक्षणाय मार्दवादि पंचगुणोपेत मिदं पिच्छोपकरणं गृहाण गृहाण । शास्त्रदानमन्त्र – ॐ णमो अरहंताणं मतिश्रुतावधिमनः पर्ययकेवलज्ञानाय द्वादशांग श्रुताय नमः। भो अन्तेवासिन् । इदं ज्ञानोपकरणं गृहाण गृहाण । कमण्डलुदानमन्त्र - ॐ नमो अरहंताणं रत्नत्रयपवित्रीकरणांगाय बाह्याभ्यन्तरमल शुद्धाय नमः । भो अन्तेवासिन् ! इदं शौचोपकरणं गृहाणं गृहाण । इस प्रकार दिगम्बर परम्परा की दीक्षा विधि में भक्ति पाठ, अनुमतिग्रहण, लोच क्रिया, व्रत स्वीकार, सोलह संस्कार आरोपण, उपकरण दान, नाग्न्यत्व प्रदान, नया नामकरण आदि क्रियाएँ होती हैं। बौद्ध परम्परा में प्रव्रज्या को प्राथमिक संस्कार के रूप में प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनिवार्य माना गया है, चाहे वह अल्पकालिक हो या पूर्णकालिक । प्रव्रजित होने के लिए माता-पिता एवं दीक्षित की स्वीकृति अनिवार्य मानी गयी है। दीक्षाग्राही की अल्पतम आयु पन्द्रह वर्ष होना आवश्यक है। इस संस्कार की प्रविष्टि हेतु कुछ योग्यताएँ भी स्वीकारी गयी हैं। विनयपिटक के अध्ययन से ज्ञात होता है कि संघ में प्रव्रज्या इच्छुक को यह संस्कार सम्पन्न करने से पूर्व पूछा जाता है कि वह पितृ हन्ता, मातृ हन्ता
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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