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________________ प्रव्रज्या विधि की शास्त्रीय विचारणा... 71 विरोध किया जा रहा है, परन्तु यह विरोध करने से पूर्व उन्हें परिस्थिति का पूर्ण ज्ञान कर लेना चाहिए, जो उनके पास नहीं है । उनका तर्क है कि बाल दीक्षा बालकों के अधिकारों एवं उनकी स्वतन्त्रता आदि का हनन है। बाहरी रूप से यह बात सत्य भी प्रतीत होती है, क्योंकि बाल स्वाभाविक जो क्रियाएँ एवं चेष्टाएँ हैं वे मुनि जीवन धारण करने पर सर्वथा परिवर्तित हो जाती है। दीक्षित जीवन की अपनी मर्यादाएँ हैं, जिनका पालन बाल, युवा, वृद्ध सभी करते हैं। परन्तु यह तर्क मात्र जानकारी के अभाव एवं एक पक्षीय भौतिकतावादी दृष्टिकोण के कारण उत्पन्न होता है। जिसे नीम एवं करेले के गुण नहीं पता उनके लिए वह एक अत्यन्त कड़वी चीज है जो कि सत्य है, परन्तु अर्धसत्य। इसी प्रकार जो आध्यात्मिक धरातल पर बाल दीक्षा का आंकलन नहीं करते उन्हें यह शारीरिक यातना रूप नजर आता है। यदि आज के भौतिक स्पर्धामय जगत पर नजर दौड़ाएँ तो हमें ज्ञात होगा कि बच्चे के गर्भ में आते ही उसके परवरिश सम्बन्धी चिन्ताएँ शुरू हो जाती हैं। कई स्कूलों में गर्भस्थ बच्चों के प्रवेश भी शुरू हो जाते हैं और दो-ढाई साल के बालकों को आठ-आठ घण्टे स्कूलों में भेज दिया जाता है, यह उन बालकों के बचपन का हनन नहीं है? पाश्चात्य संस्कृति की नकल में हम अपनी अकल बेचे जा रहे हैं। आज छोटी सी उम्र में बच्चों को Computer, Dance, Music, Sports, Competative Exams आदि सभी के लिए तैयार करने का प्रयास किया जाता है उनकी जिन्दगी यन्त्रवत बना दी गयी है, यह उन बच्चों के साथ अन्याय नहीं है ? जब यह कष्ट भविष्य के प्रगति एवं प्रतिस्पर्द्धात्मक जीवन में सहयोगी होने से स्वीकार्य है तो फिर मुनि जीवन में विहार, गोचरी, लोच, अध्ययन आदि जो क्रियाएँ हैं जिसमें शारीरिक कष्ट अवश्य है, परन्तु मानसिक शान्ति है, उसका विरोध क्यों ? एक तर्क जो मानवाधिकार आयोग (Human Rights Commission) देती है कि बाल दीक्षा के कारण बच्चों को अपने माता-पिता परिवार से जबरन अलग किया जाता है जो कि उनके विकास में बाधक बनता है तथा माता-पिता के स्नेह एवं प्रेम से वंचित रखता है।
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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