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________________ 70...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के.... ___ * प्रभु महावीर के ग्यारहवें प्रभास गणधर ने 15 वर्ष की अल्पायु में दीक्षा ग्रहण कर चौदह पूर्वो का ज्ञान अर्जित किया और बारह अंग सूत्रों की रचना की। * कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र ने सात वर्ष की उम्र में चारित्र अंगीकार कर जैन धर्म की महती प्रभावना की। ___* द्वितीय दादा गुरुदेव के नाम से विख्यात मणिधारी जिनचन्द्रसूरि ने छह वर्ष की उम्र में दीक्षा धारण कर नौ वर्ष की अल्पाय में आचार्य पद तथा तेरह वर्ष की आयु में युगप्रधान पद से विभूषित बन गये। इसी के साथ अपने ज्ञानबल, तपोबल एवं संयमबल से जिन धर्म को दिग् दिगन्त में प्रसरित किया। * न्यायाचार्य यशोविजयजी ने अल्पवय में चारित्र अंगीकार कर अमूल्य साहित्य के सर्जन द्वारा जिनशासन को अमर कर दिया । यदि उस काल में राजाओं ने बाल दीक्षा पर प्रतिबन्ध किया होता तो इस विश्व को ये सभी विभूतियाँ कैसे मिल पाती ? __* वैदिक धर्म का समग्र संसार में प्रचार-प्रसार करने वाले शंकराचार्य ने भी आठ वर्ष की उम्र में गृह त्यागकर संन्यास जीवन धारण कर लिया था। * स्वामीनारायण सम्प्रदाय के संस्थापक सहजानन्द स्वामी ने भी छः वर्ष की अल्पायु में संन्यास मार्ग को अपना लिया था। वर्तमान युग में भी कई साधु-साध्वी सात, आठ, नौ, दस, ग्यारह आदि वर्ष की अल्प आयु में दीक्षित होकर आत्म कल्याण एवं शासन कार्यों में संलग्न है। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि यदि बाल दीक्षाएँ न होती तो पूर्वोल्लिखित सन्तों के नाम इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों पर अंकित नहीं होते। ___भारतीय संस्कृति में धर्म पालन के लिए कहीं भी अवरोधक नियम नहीं हैं। ख्रिस्ती धर्म में 15 वर्ष की युवती साध्वी (Nun) बन सकती है तो जैन धर्म में 15 वर्ष की युवती दीक्षित जीवन क्यों नहीं अंगीकार कर सकती ? दीक्षा की क्रिया हिन्दू-परम्परा की जनेऊ धारण की क्रिया के समान है जिस पर किसी तरह का प्रतिबन्ध नहीं हो सकता। • बाल दीक्षा के सम्बन्ध में पूर्व और उत्तरपक्ष ___ बाल दीक्षा वर्तमान भौतिक जगत और अध्यात्म जगत के बीच एक विवादास्पद मुद्दा बन गया है। आज मानवाधिकार समिति, बालहित रक्षक समिति (Child Welfare Committee) UNO आदि के द्वारा इसका विशेष
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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