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________________ 66...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के..... काना - एक चक्षु वाला हो, इन व्यक्तियों को दीक्षा देने पर लोकनिन्दा, तिरस्कार आदि हानियाँ होती हैं। यह उल्लेखनीय है कि दीक्षा देने के बाद यदि कोई विकलांग हो जाता है तो उसे आचार्य पद नहीं दिया जा सकता। यदि आचार्य स्वयं विकलांग हो जाता है तो वह योग्यता सम्पन्न शिष्य को अपने पद पर प्रतिष्ठापित करें और स्वयं को चुराये गये महिष की तरह गुप्त स्थान में साधनारत रखें।28 दिगम्बराचार्यों ने मुनि दीक्षा को 'जिनलिंगधारण' इस नाम से भी सम्बोधित किया है तथा मोरपिच्छी, कमण्डलु आदि को जिनमुद्रा कहा है। पं. आशाधरजी के अनुसार जो ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य उत्तम देश, उत्तम वंश और उत्तम जाति में उत्पन्न हुआ हो, निष्कलंक हो, ब्रह्महत्या आदि का अपराधी नहीं हो तथा व्रत पालन में समर्थ हो उसे ही जिन मुद्रा प्रदान करना चाहिए। वही साधु पद के योग्य है।29 आचार्य जिनसेन ने पूर्वमत का अनुसरण करते हुए कहा है कि जिसका कुल और गोत्र विशुद्ध है, चरित्र उत्तम है, मुख सुन्दर है और व्यवहार प्रशंसनीय है, ऐसा व्यक्ति ही दीक्षा ग्रहण के योग्य होता है।30 इससे सिद्ध होता है कि जिसका मातृकुल और पितृकुल शुद्ध हो वही ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य दीक्षा का यथार्थ अधिकारी है, केवल जन्मत: ब्राह्मण आदि होने से दीक्षा योग्य नहीं होता। महापुराण में कहा गया है कि जाति, गोत्र आदि कर्म शुक्लध्यान के कारण हैं अत: जो उच्च जाति आदि से युक्त होते हैं वे ही यथार्थ रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य हैं, शेष सभी शद्र हैं।31 बौद्ध-परम्परा के विनयपिटक में प्रव्रज्या हेतु 31 व्यक्ति अयोग्य बताये गये हैं। इस आधार पर प्रव्रज्या योग्य व्यक्ति का भी निर्धारण किया जा सकता है। 1. जो कर हीन हो, 2. पैरहीन हो, 3. हाथ और पैर दोनों से हीन हो, 4. कर्ण हीन हो, 5. नासिका रहित हो, 6. नासिका और कर्ण दोनों से रहित हो, 7. अंगुली रहित हो, 8. अंगुलियों का अग्रभाग कटा हुआ हो, 9. अंगुलियों के पर्वभाग विक्षत हो, 10. सभी अंगुलियों से रहित हो, 11. कुबड़ा हो, 12. बौना हो, 13. घेघा रोग से ग्रसित हो, 14. लक्षणाहत यानि जिसे दण्ड रूप में आग से दागा गया हो, 15. कोड़ों से आहत हो,
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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