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________________ बचपन में ही छेदकर या गलाकर उसे नपुंसक बना दिया हो । 2. चिप्पित्त - जिसका पुरुष चिह्न जन्मतः मर्दित कर विगलित कर दिया गया हो। 3-4. मन्त्र औषधि उपहत - जो मन्त्र या औषधि के प्रभाव से स्त्रीवेद या पुरुषवेद नष्ट हो जाने के कारण नपुंसक बन गया हो। 5. ऋषिशाप - जो ऋषि आदि के शाप से नपुंसक बना हो । 6. देवशाप जो देव के शाप से नपुंसक बना हो । इन छः प्रकार के नपुंसकों में यदि दीक्षा की अन्य योग्यताएँ हों तो इन्हें दीक्षा दी जा सकती है | 26 प्रव्रज्या विधि की शास्त्रीय विचारणा... 65 नपुंसक को दीक्षा क्यों नहीं ? यह आगमिक प्रश्न है। एक शिष्य ने पूछा - जिस प्रकार ध्यान, उपवास, नियम आदि में स्थित स्त्री और पुरुष के वेद का उदय रहता है उसी प्रकार नपुंसक के भी वेदोदय रहता है फिर नपुंसक को प्रव्रजित करने में क्या दोष है ? इसका समाधान करते हुए निशीथ भाष्यकार ने कहा है कि स्त्री और पुरुष प्रव्रजित होकर निर्दोष स्थानों में रहते हैं नपुंसक यदि स्त्रियों या पुरुषों के साथ रहता है तो संवास, स्पर्श और दृष्टिजनित दोषों की सम्भावना रहती है । जैसे माता को देखकर बालक को स्तनाभिलाषा होती है, एक व्यक्ति को आम खाते हुए देखकर दूसरे के मुँह में पानी आ जाता है, वैसे ही नपुंसक को देखकर स्त्री और पुरुष के प्रबल वेदोदय हो सकता है, अतः नपुंसक को दीक्षा हेतु निषिद्ध माना है। 27 - दीक्षा अयोग्य विकलांग जैन परम्परा में निम्न विकलांग व्यक्तियों के लिए भी दीक्षा का निषेध किया गया है. - जो हाथ, पाँव, कान, नाक आदि से रहित हो तथा हाथ, पैर आदि अंग अपेक्षाकृत छोटे हों। कुब्ज पंगु लूला वडभ आगे या पीछे से जिसका शरीर निकला हुआ हो, पसली से हीन हो या कुबड़ निकली हुई हो, पाँव आदि से अपंग होने के कारण चल नहीं सकता हो, जिसका हाथ आधा हो या कटा हुआ हो, — -
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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