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________________ नन्दिरचना विधि का मौलिक अनुसंधान... 39 ॐ ह्रीँ ब्रह्मणे सायुधाय, सवाहनाय, सपरिजनाय इह नन्द्यां आगच्छआगच्छ स्वाहा । अधोदिशा के स्वामी नागदेवता का आह्वान मन्त्र ॐ ह्रीँ नागाय, सायुधाय, सवाहनाय, सपरिजनाय इह नन्द्यां आगच्छ- आगच्छ स्वाहा । नवग्रह स्थापना - नन्दीरचना के प्रसंग पर नवग्रहों की स्थापना करने का निर्देश पंचाशकप्रकरण अथवा विधिमार्गप्रपा में नहीं मिलता है किन्तु वर्तमान में यह विधि देखी जाती है। तदनुसार नवग्रह स्थापना की यह विधि है - इसमें मन्त्रोच्चारपूर्वक नैवेद्य-फल आदि चढ़ाते हुए प्रत्येक ग्रह की स्थापना की जाती है। नवग्रह स्थापना के मन्त्र ये हैं 21 सूर्य प्रमुखा खेटा जिनपति पुरतोऽवतिष्ठन्तु स्वाहा । चन्द्र प्रमुखा खेटा जिनपति पुरतोऽवतिष्ठन्तु स्वाहा । भौम प्रमुखा खेटा जिनपति पुरतोऽवतिष्ठन्तु स्वाहा। बुध प्रमुखा खेटा जिनपति पुरतोऽवतिष्ठन्तु स्वाहा । गुरु प्रमुखा खेटा जिनपति पुरतोऽवतिष्ठन्तु स्वाहा । शुक्र प्रमुखा खेटा जिनपति पुरतोऽवतिष्ठन्तु स्वाहा । शनिश्चर प्रमुखा खेटा जिनपति पुरतोऽवतिष्ठन्तु स्वाहा । राहु प्रमुखा खेटा जिनपति पुरतोऽवतिष्ठन्तु स्वाहा। केतु प्रमुखा खेटा जिनपति पुरतोऽवतिष्ठन्तु स्वाहा । तत्पश्चात त्रिगड़े में विराजमान जिनप्रतिमा की पुष्प, फल, वस्त्र आदि चढ़ाकर पूजा करें। प्रचलित पद्धति के अनुसार नन्दीरचना (त्रिगड़े) के मध्य भाग एवं चारों दिशाओं में स्वस्तिक करके उन पर नारियल, गुड़ और सवा रुपया चढ़ाते हैं, दीपक स्थापित करते हैं और अगरबत्ती या सुगन्धित धूप का खेवन करते हैं। तदनन्तर दशों दिशाओं में दिक्पालों की स्थापना एवं पूजन करते हैं। पूजन करते समय मन्त्रोच्चार पूर्वक क्रमशः जल, चन्दन, पुष्प, धूप, दीपक तथा पान में अक्षत, नैवेद्य, फल आदि लेकर चढ़ाते हैं। कुछ परम्परा में नवग्रह की स्थापना भी करते हैं। विसर्जन – नन्दीरचना का प्रयोजन पूर्ण होने पर, जिस क्रम से दिक्पाल, नवग्रह आदि को आमन्त्रित किया गया, उसी क्रमपूर्वक दिक्पाल देवताओं को
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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