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________________ 294...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन ज्ञात हो जाए कि वर और वधू उच्च कुल के हैं, जिनके पूर्वजों की परम्परा अनेक पीढ़ियों तक चली आ रही है। इससे सामाजिक जीवन में उनका स्थान भी सम्मान्य बनता है। कंकण बन्धन के पीछे रही आम अवधारणा- यह एक प्राचीन प्रथा है। प्राच्यकाल में इसका महत्त्व अत्यधिक था। यह हाथ में बांधा जाता है। इस सम्बन्ध में यह अवधारणा रही है कि इसके हाथ में बंधे रहने से वैवाहिक आदि कार्यों में वर-वधु को किसी-किसी तरह की भूत बाधा या आपत्तियाँ नहीं आती हैं। इसे उपद्रव-निवारण का प्रतीक माना है, अत: इसे रक्षा सूत्र भी कहते हैं। इस युग में सजावट के सिवाय इसका कोई मूल्य नहीं रह गया है। कुछ प्रान्तों में आज भी इसे मंगल सूचक माना जाता है। अभिसिंचन क्रिया का मुख्य हार्द- अभिसिंचन की क्रिया जल से होती है। सभी धर्मों में जल को औषध तत्त्वों और पवित्रता से संयुक्त माना है अत: इस विधि द्वारा वधू को शारीरिक दोषों से मुक्त तथा वैवाहिक जीवन के लिए पवित्र समझा जाता है। ___ हृदय स्पर्श के निहित तथ्य- यह क्रिया हिन्दू-परम्परा में प्रचलित है। इसमें वर कुछ शब्दों के साथ वधू के हृदय का स्पर्श करता है। इसका प्रयोजन अन्तर्मन से स्नेह-सम्बन्ध को बढ़ाना एवं जागृत करना है। हृदय भावों का केन्द्र है। इसके स्पर्श द्वारा वर प्रतीक रूप से वधू को स्नेह के लिए उत्प्रेरित करता है, ताकि वह हृदय से पति को स्वीकार करे और स्नेह के संसार में अपने आपको सराबोर कर दे।63 इस क्रिया की आवश्यकता का एक कारण यह भी समीचीन लगता है कि वह पत्नी के हृदय पर हाथ रखकर वहाँ किसी सन्देह को स्थान नहीं देने की भावना परिलक्षित करता है परन्तु वर्तमान शिष्टाचार के अनुसार ऐसा करना थोड़ा अनुचित जैसा लगता है, इसलिए आजकल पति पत्नी के सिर या कन्धे पर हाथ रखता है और यह विश्वास दिलाता है कि हम दोनों एक हृदय होकर रहेंगे और दाम्पत्य जीवन के उत्तरदायित्वों को पूरी ईमानदारी के साथ निभाएंगे। ___ सुमंगली (सिन्दूर भरना) क्रिया की महत्ता- आधुनिक वैवाहिक विधिविधानों की यह सबसे महत्त्वपूर्ण क्रिया है। इसमें वर अपनी अंगूठी या चाँदी की शलाका से वधू की माँग में सिन्दूर लगाता है। इसे माँग भरना भी कहा जाता
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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