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________________ 292... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन शिलारोहण विधि का अमृत संदेश- यह विधि वैदिक परम्परा में प्रचलित है। इस क्रिया में वर-वधू को मन्त्र पूर्वक एक प्रस्तर खण्ड पर आरूढ़ किया जाता है। पत्थर स्थिरता एवं शक्ति का प्रतीक है। यहाँ पत्नी को अपने पतिव्रत में स्थिर होने के लिए कहा जाता है। इस क्रिया का दूसरा प्रयोजन यह भी माना गया है कि वर-वधू पत्थर पर पाँव रखते हुए यह प्रतिज्ञा करते हैं कि जिस प्रकार अंगद ने अपना पैर जमा दिया था, उसी तरह हम पत्थर की लकीर की तरह अपना पैर आगत उत्तरदायित्वों को निभाने के लिए जमाते हैं। यह धर्मकृत्य खेल-खिलौनों की तरह नहीं किया जा रहा, जिसे एक मखौल समझकर तोड़ा जाता रहे, वरन् यह प्रतिज्ञा और निष्ठा पत्थर की लकीर की तरह अमिट बनी रहेगी। इन्हें चट्टान की तरह अटूट एवं चिरस्थाई रखा जाएगा। सप्तपदी का नैतिक महत्त्व - विवाह की अनेक विधियाँ हैं, उनमें सप्तपदी का एक अपना अलग ही वैशिष्टय है। वैधानिक दृष्टि से यह क्रिया अति साधारण है। इसमें पति-पत्नी को सात कदम साथ-साथ चलाया जाता है अर्थात सात बार वर-वधू साथ-साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ते हैं। चावल की सात ढेरी या कलावा बंधे हुए सकोरे रख दिए जाते हैं। उन पर पैर लगाते हुए दोनों एक-एक कदम आगे बढ़ते जाते हैं। इस तरह सात बार में सात कदम बढ़ाए जाते हैं। ये सात कदम पहला कदम अन्न के लिए, दूसरा बल के लिए, तीसरा धन के लिए, चौथा सुख के लिए, पाँचवां प्रजा के लिए, छठवाँ ऋतुचर्या के लिए, सातवाँ मित्रता के लिए उठाया जाता है 162 इसका संकेत यह है कि विवाह होने के उपरान्त पति - पत्नी को सात कार्य करने होते हैं, उनमें दोनों का उचित और न्याय संगत योगदान रहे, इसकी रूपरेखा सप्तपदी में निर्धारित की जाती है। प्रथम कदम आहार शुद्धि के लिए होता है, जिसका अर्थ है - आहार स्वास्थ्यवर्द्धक हो। रसलोलुपता को कोई स्थान न मिले, आहार की सात्विकता का पूरा ध्यान रखा जाए। दूसरा कदम शारीरिक और मानसिक बल के लिए है। उचित परिश्रम एवं नियमित आहार विहार से शरीर का बल स्थिर रहता है। अध्ययन एवं विचार विमर्श से मनोबल बढ़ता है । इन उपायों के बारे में सोचते रहें। तीसरा कदम धन के लिए है। अर्थ व्यवस्था का तरीका समुचित हो, उचित कार्यों में कंजूसी न की जाए और अपव्यय से उपेक्षित न रहें। चौथा कदम सुख के लिए है। यह प्रेरणा
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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