SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कल्याणकारी भी बताया गया है। इस तरह आगम से भी जिनप्रतिमा की पूजनीयता स्पष्ट होती है। - द्रव्य लेश्याओं की असर भाव लेश्याओं पर पड़ती है और द्रव्य लेश्या पुद्गल रूप है। भगवान की मूर्ति शांत रममय परमाणुओं से बनी होने से उसके आभा मण्डल में भी शांतरस के परमाणु होते हैं। अतः उसकी निश्रा में जाकर व्यक्ति की लेश्या शुभ हो जाती है। यह मूर्ति का स्वभाव है कि वह शुभं लेश्या उत्पन्न करने में परमनिमित्त कारण बनती है। - आचार्य श्री का प्रश्न था कि द्रव्य पूजा में धूप दीप आदि का निषेध क्यों नहीं ? पहले हमें देखना है कि आगमों में भी देवों द्वारा जिन जन्म आदि अनेक प्रसंगों पर तीर्थकरों के अभिषेक आदि किये जाते हैं एवं प्रसंग पर शाश्वत प्रतिमाओं की पूजा भी की जाती है। उन सब में भी हिंसा होती है। स्वयं करूणासागर तीर्थकर उसका निषेध क्यों नहीं करते ? सम्यग् दृष्टि देव ऐसा क्यों करते हैं ? इनके उत्तर के लिए हमें पहले थोड़ी बात समझनी पड़ती है कि- पंच महाव्रत धारी, षट्काय रक्षक साधु भगवंत सर्व पापों से विरत है एवं उन्होंने सर्व द्रव्यों का त्याग कर दिया है और उन्हें द्रव्य की मूर्छा भी नहीं होती है। अतः उन्हें द्रव्य पूजा की भी आवश्यकता नहीं है। श्रमण जीवन निवृत्ति प्रधान होता है। श्रावक जीवन प्रवृत्ति प्रधान होता है। श्रावक का मन निवृत्ति के लिए इतना परिपक्व नहीं होता है, जबकि मन का प्रवृत्ति मार्ग में अनादि काल से अभ्यास है, इसलिए वह बहुधा अशुभ प्रवृत्तियों में जुड़ जाता है। उन अशुभ प्रवृत्तियों के रस को तोड़ने के लिए शुभ प्रवृत्तियाँ भी की जाती है,
SR No.006232
Book TitleDravya Puja Evam Bhav Puja Ka Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy