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________________ होती है, लेकिन वह गौण मानी जाती है। राजकीय स्तर के पदाधिकारी भी आकर के पुष्पांजलि अर्पित करके शरीर की अर्चना करते हैं एवं भक्तजन उसे देखकर अपने गुरू का बहुमान हो रहा है, ऐसा महसूस करते हैं। वह कोई गलत बात भी नहीं क्योंकि ये मानव मन का स्वभाव है कि नाम, स्थापना एवं द्रव्य द्वारा भाव से जुड़ा जाता है। वस्तु जड़ होने हुए भी पूज्य के संबंधित होने पर पूज्य बनती है। इसी तरह जिन प्रतिमा को चेतना शून्य होने से अपूजनीय मानने की बात भी नहीं रहती है। - आचार्य श्री ने पत्थर की गाय का उदाहरण देकर मूर्तिपूजा से कल्याण होने का निषेध किया। उदाहरण में गाय की मूर्ति से बालक ने दूध की अपेक्षा की। परन्तु गाय की मूर्ति कभी दूध के लिए बनाई नहीं जाती है। चित्र एवं मूर्ति का संबंध मन से है, वे मन के परिणामों को ध्यान में लेकर ही बनाये जाते हैं। - घर पर गुरु आदि की तस्वीरें बातें करने या उपदेश सुनने के लिए नहीं रखी जाती परन्तु वे स्मरण आदि के द्वारा उच्च आदर्श देती है। यह तो सर्वविदित ही है। - टी.वी. आदि के दृश्य भी जड़ होते हुए भी मन के परिणामों पर भारी असर करते है। - इसी तरह भगवान की मूर्ति के दर्शन एवं पूजन से मन में श्रद्धा-समर्पण आदि के शुभ भाव उत्पन्न होते हैं। जिनसे सम्यग्दर्शन आदि की शुद्धि होती है। यह आत्म कल्याण में अत्यन्त सहायक है। अतः भगवान की मूर्ति से आत्म कल्याण होता है, यह समझ सकते है, क्योंकि आत्म कल्याण मुख्यतया मन के परिणामों पर निर्भर है। अतः पत्थर की गाय के दृष्टांत में गलत धारणा कर लेना उचित नहीं है। . विशेष में रायपसेणीय सूत्र में सूर्याभदेव द्वारा की गयी जिनप्रतिमा की पूजा आदि का वर्णन आता है। उसकी पूजा को
SR No.006232
Book TitleDravya Puja Evam Bhav Puja Ka Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2016
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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