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________________ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन विभिन्न हैं, यथा- मानव आचरण के मनोवैज्ञानिक हेतु, मानव व्यवहार की आदर्श पृष्ठभूमि, वस्तुस्थिति की गम्भीरता, हास्यास्पदता, बिडम्बनात्मकता आदि । कवि ने लोकोक्तियों के द्वारा मानव आचरण के मनोवैज्ञानिक आधारों को मनोहर दृष्टान्तों से स्पष्ट कर कथन को रमणीय बनाने में पर्याप्त सफलता हस्तगत की है । उदाहरण दर्शनीय है - १४१ अर्ककीर्ति आमन्त्रण न मिलने पर भी राजकुमारी सुलोचना के स्वयंवर में जाने के लिये तैयार हो जाता है, "क्योंकि चौराहे पर पड़े रत्न को कौन नहीं उठाना चाहता ?" आस्तदा सुललितं चलितव्यं तन्मयाऽवसरणं बहुभव्यम् । श्रीचतुष्पथक उत्कलिताय कस्यचिद् व्रजति चिन्त्र हिताय ॥ ४/७ ॥ 1 राजकुमारी सुलोचना स्वयंवर सभा में जयकुमार का वरण करती है। इससे अर्ककीर्ति उदास हो जाता है । तब उसका चाटुकार मित्र दुर्मर्षण उससे झूठ-मूठ कहता है कि राजकुमारी सुलोचना तो गुणों की पारखी है, वह तुम्हें ही वरण करना चाहती थी किन्तु पिता की आज्ञा के वशीभूत हो उसे जयकुमार का वरण करना पड़ा क्योंकि “लोक में ऐसा कौन है जो स्वेच्छा से रत्न छोड़कर काँच ग्रहण करेगा ?” कन्याऽसौ विदुषी धन्या गुणेक्षणविचक्षणा । कुलेन्दोच्छन्दसि च्छन्द उपेक्षां किन्तु नार्हति ॥ ७ / १३॥ X X X अन्यथाऽनुपपत्त्याऽहं गतवांस्त्वदनुज्ञया । स्वातन्त्र्येण हि को रत्नं त्यक्त्वा काचं समेष्यति ।। ७ / १५ ॥ नृपरल, युद्ध में पराजित अर्ककीर्ति को राजा अकम्पन समझाते हुए कहते हैं - हे जयकुमार ने आपको युद्ध में पराजित कर जो चपलता की है, आप उसे भूल जायें। इस विषय में कोई विचार न करें । “दूध पीते समय बछड़ा गाय की छाती में चोट मारता है, फिर भी गाय नाराज न होकर उसे दूध ही पिलाती है" यदपि चापलमाप ललाम ते जय इहास्तु स एव महामते । उरसि सन्निहतापि पयोऽर्पयपत्यथ निजाय तुजे सुरभिः स्वयम् ॥ ९/१२ मनुष्य का विवेकविहीन पुण्यकर्म निष्फल हो जाता है । यह " अन्धा बटे बछड़ा खाय" की कहावत को चरितार्थ करता है --
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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