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________________ ११८ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन का आस्वादन सा हो जाता है, जिससे वह अलौकिक आनन्द में डूब जाता है । इसीप्रकार यवेक्षुरत्यन्तरसप्रपीडितो भुवि प्रविद्धो दहनाय शुष्यते । तथा जरायन्त्रनिपीडिता तनुर्निपीतसारा मरणाय तिष्ठति ॥' यहाँ यन्त्र के द्वारा रस निचोड़ कर जला देने योग्य बनाये गये गन्ने के बिम्ब के जरा द्वारा जीवन शक्ति को निचोड़ कर शरीर को मरण योग्य बना दिये जाने का अमूर्त दार्शनिक सत्य मूर्त बनकर हृदय को छू लेता है और सहृदय के जीवन में अस्थिरता और शरीर की नश्वरता विषयक विचारों की हिलोरें उठने लगती हैं, निर्वेद जागृत होता है और शान्तरस की अनुभूति होती है । इस प्रकार बिम्बों में भावोद्बोधन की शक्ति होती है। रसाभिव्यंजक दृश्यकाव्य इन्द्रियगोचर होने के कारण रसानुभूति में सहायक होता है । इसी कारण रस को श्रव्य काव्य का भी प्रमुख तत्त्व माना गया है । दृश्यकाव्य में हम वस्तु को अपनी स्थूल इन्द्रियों से प्रत्यक्ष अनुभूत करते हैं अर्थात् आँख, कान, नाक आदि से देखते, सुनते और सूंघते हैं; परन्तु श्रव्यकाव्य में यह प्रत्यक्षीकरण स्थूल इन्द्रियों से न होकर सूक्ष्म इन्द्रियों से होता है, जिनकी स्थिति पाठक या श्रोता के मन में रहती है। "काव्य की भाषा, शक्ति की भाषा (Language of Force) कहलाती है। यह शक्ति, भाषा में बिम्ब से ही आती है । भावों की मार्मिकता के सम्प्रेषण के लिए आवश्यक है कि वे बिम्ब द्वारा कम से कम शब्दों में व्यक्त किये जायें, क्योंकि संक्षिप्तता भाव को तीव्रतर रूप में प्रस्तुत करती है। उदाहरणार्थ उअत सूर जस देखिउ चाँद छपै तेहि धूप । जैसे सबै जाहि छपि पदुमावति के रूप ॥ यहाँ कवि पद्मावती के रूप की श्रेष्ठता को व्यंजित करना चाहता है । पद्मावती के लिए जायसी के हृदय में एक अपूर्वता (लोकोत्तरता) का भाव है । वह अपूर्व सुन्दरी है और उसके समक्ष संसार के अन्य सौन्दर्य उसी प्रकार फीके पड़ जाते हैं जिस प्रकार उदित होते हुए सूर्य के समक्ष चाँद का सौन्दर्य । इस भाव को कवि "अपूर्व सुन्दरी है" कहकर १. अश्वघोष : सौन्दरनन्द, ९/३१ ।। २. जायसी की बिम्ब योजना : डॉ. सुधा सक्सेना, पृ. ४५
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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