SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जयोदय महाकाव्य का शैलीवैज्ञानिक अनुशीलन १०१ जयकुमार का शरीर अद्भुत रूपसौन्दर्यशाली था जिसे देखते ही कामदेव का शरीर अनंग हो गया । अधोलिखित श्लोक में व्यतिरेक के द्वारा कथा का महिमातिशय व्यंजित हुआ हैकथाप्यथामुष्य यदि श्रुतारात्तथा वृथा साऽऽर्य सुधासुधारा । कामैकदेशरिणी सुधा सा कथा चतुर्वर्गनिसर्गवासा ॥ १ / ३॥ - हे आर्य ! इस राजा ( जयकुमार) की कथा यदि एक बार भी सुन ली तो फिर अमृत की अभिलाषा न रहेगी, क्योंकि अमृत तो चारों पुरुषार्थों में केवल एक काम पुरुषार्थ ही प्रदान करता है पर इस राजा की कथा चारों पुरुषार्थों की प्रदायक है । यहाँ उपमान अमृत से उपमेय कथा के आधिक्य (वैशिष्ट्य ) का वर्णन होने से व्यतिरेक अलंकार है । यह अमृत की तुलना में जयकुमार की कथा के महिमातिशय का व्यंजक है । अन्तिमान् है - वस्तु के स्वाभाविक स्वरूप के उन्मीलन हेतु कवि ने भ्रान्तिमान् का प्रयोग किया पुलिने चलनेन केवलं वलितग्रीवमुपस्थितो बकः । मनसि व्रजतां मनस्विनामतनोच्छ्वेतसरोजसम्भ्रमम् ॥ १३ / ६३॥ नदी के किनारे बगुला एक पैर से खड़ा हुआ है और उसने अपनी ग्रीवा टेढ़ी कर रखी है । यह बगुला विवेकीजन के मन में श्वेत कमल का भ्रम उत्पन्न कर रहा है । यहाँ बगुले में कमल की भ्रान्ति बगुले की स्वाभाविक उज्ज्वलता की अभिव्यंजक है । - इसी प्रकार तलवार की चमक में बिजली की चमक की भ्रान्ति के द्वारा तलवार के दैदीप्यमान स्वरूप की प्रतीति करायी गयी है. - उद्भूतसद्धूलिघनान्धकारे शम्पा सकम्पा स्म लसत्युदारे । रणाङ्गणे पाणिकृपाणमाला चुकूजुरेवं तु शिखण्डिबालाः ॥ ८/८ ॥ - उड़ी हुई धूलि के कारण विशाल रणस्थल मेघ की तरह अन्धकाराच्छन्न हो गया था । वहाँ योद्धाओं के हाथों में तलवारें चमक रही थीं, मोरों के बच्चों ने उन्हें देखा तो वे उसे बिजली समझ कर केकावाणी करने लगे ।
SR No.006193
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAradhana Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy