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________________ 220/ जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन उन्होंने सम्यग्दर्शन, सत्पात्र दान आदि श्रावक सम्बन्धी और यम आदि मुनि सम्बन्धी धर्म का निरूपण किया। चारों गतियाँ, उनके कारण और फल, स्वर्ग, मोक्ष के निदान एवं जीवादि द्रव्य और तत्त्व इन सबका भी यथार्थ प्रतिपादन किया । ततः देव-देवियों के द्वारा दीक्षा लेने का कारण पूछे जाने पर भीम कहने लगे कि "सर्वज्ञ देव ने मुझसे स्पष्टाक्षरों में कहा है, "तू पहले नगरी में भव देव नामक वैश्य हुआ था । वहाँ तूने रतिवेगा, सुकात्त से वैर बाँधकर मारा था । मरकर वे दोनों कबूतर-कबूतरी हुए सो वहाँ भी तूने विलाव होकर उन दोनों को मारा था । वे मरकर विद्याधर-विद्याधरी . हुए थे। उन्हें भी तुम विद्युच्चौर होकर उपसर्ग द्वारा मारा था । उस पाप से तुम नरक गया था और वहाँ के दुःख भोगकर आने पर यह भीम हुआ है। भरत : ऋषभ देव की पहली रानी यशस्वती से उत्पन्न सौ पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र । इनके एक सौ एक भाई-बहन थे। ऋषभ देव दीक्षा लेने से पहले भरत को राज्य सौंप दिये । दिग्विजय करके ये भारत में प्रथम चक्रवती हुए । इनकी पत्नी का नाम सुभद्रा था । जिस दिन ऋषभदेव को केवल ज्ञान हुआ, उसी दिन भरत के यहाँ चक्ररत्न की उत्पत्ति हुई और उन्हें पुत्र रत्न हुआ । ततः षट् खण्ड पृथ्वी के स्वामी महाराज भरत ने चिरकाल तक लक्ष्मी का उपभोग कर अर्ककीर्ति नामक पुत्र का राज्याभिषेक कर जिन दीक्षा धारण कर ली । पश्चात् भरत अपने समस्त केश को पंच मुष्टियों से मुंचित करने के बाद आयु के अन्त समय वे वृषभ सेन आदि गणधरों के साथ कैलास पर्वत पर जाकर मोक्ष प्राप्त किये । जयकुमार : राजा सोमप्रभ की लक्ष्मीवती रानी से उत्पन्न पुत्र । हस्तिनापुर का राजा । काशिराज अकम्पन की पुत्री सुलोचना का पति । महाकाव्य का प्रधान नायक । चिरकाल तक सुखोपोभोग करते हुए शिवंकर महादेवी के पुत्र अनन्तवीर्य का राज्याभिषेक कर चक्रवर्ती पुत्रों के साथसाथ दीक्षा धारण की । अन्ततः वह जयकुमार भगवान् का इकहत्तरवाँ गणधर हुआ । पति शोक से व्याकुल सुलोचना ने भी चक्रवर्ती की पट्टानी सुभद्रा के समझाने पर ब्राह्मी आर्यिका के पास शीघ्र ही दीक्षा धारण कर ली तथा चिरकाल तक तपस्या कर अच्युतस्वर्ग के अनुत्तरविमान में देव पैदा हुई। मेघस्वर : जयकुमार का एक नाम अथवा उपाधि जो उसने नागमुख और मेघमुख देवों को जीतकर धारण की थी।
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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