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________________ जयोदय महाकाव्य में प्रस्तुत स्थान /219 और अर्ककीर्ति में युद्ध हुआ। अन्त में अकम्पन ने सुलोचना का विवाह जयकुमार और लक्ष्मीवती का विवाह अर्ककीर्ति के साथ किया । ततः राजा अकम्पन हेमागंद को राज्य सौंपकर श्री भगवान् वृषभदेव के समीप जाकर अनेक राजाओं और रानी सुप्रभा के साथ दीक्षा धारण की तथा अनुक्रम से श्रेणियाँ चढ़कर केवलज्ञान प्राप्त किया । अर्ककीर्ति : भरत चक्रवर्ती का पुत्र । महाराज भरत ने चिरकाल तक लक्ष्मी का उपभोग कर अर्ककीर्ति नामक पुत्र का अभिषेक किया । काशिराज अकम्पन द्वारा आयोजित स्वयंवर में सुलोचना के द्वारा जयकुमार को वरण किये जाने पर एवं दुर्मर्षण नामक सेवक के द्वारा अर्ककीर्ति को उत्तेजित करने के फलस्वरूप जयकुमार और अर्ककीर्ति में घनघोर युद्ध हुआ । . युद्ध में जयकुमार की विजय एवं अर्ककीर्ति की पराजय से खुश होकर अकम्पन अनुनय विनय करके अर्ककीर्ति से अपनी छोटी पुत्री अक्षमाला का विवाह कर देते हैं । ततः अनेक प्रकार का सुखोपभोग करते हुए अपनी पैत्रिक परम्परा का निर्वाह करते हुए चिरकाल तक राज्य करते हुए महाराज अर्ककीर्ति अपने पिता की भाँति सर्वगुण सम्पन्न अपने स्पितयश नामक पुत्र को लक्ष्मी देकर अर्थात् राज्याभिषेक कर तप के द्वारा मोक्ष को प्राप्त हुए। अनन्तवीर्य : राजा जयकुमार की रानी शिवंकर महादेवी का पुत्र । जिसे राज्य सौंप कर जय ने दीक्षा ग्रहण की। अक्षमाला (लक्ष्मीवती): लक्ष्मीवती काशी नगरी के राजा अकम्पन तथा उनकी पत्नी सुप्रभा की पुत्री । इसका दूसरा नाम अक्षमाला था । उनके पिता ने सुलोचना हेतु हुए राजकुमार-अर्ककीर्ति के युद्ध में अर्ककीर्ति की पराजय के अनन्तर अक्षमाला का विवाह अर्ककीर्ति से कर दिया । श्रेयांस : हस्तिनापुर के राजा सोमप्रभ के भाई । ऋषभदेव के दीक्षा लेने के उपरान्त एक वर्ष तक भिक्षा न मिलने के बाद श्रेयांस ने उनको इक्षुरस दान किया । यह दान परम्परा का प्रारम्भ हुआ । पूर्वताल में ऋषभदेव को केवलज्ञान होने के बाद श्रेयांस ने भी सोमप्रभ के साथ ऋषभदेव के समक्ष दीक्षा ले ली। भीमराट् मुनि : सर्प सरोवर के तट पर वन में स्थित एक नवदीक्षित मुनि, जिसे देखकर (हिरण्यवर्मा और प्रभावती के जीव जो देव-देवी हुए थे) उक्त दोनों ने उनसे धर्म का स्वरूप पूछा ।
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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