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________________ जयोदय महाकाव्य में छन्दोयोजना 38838888888833333333 छन्दः शास्त्र का सामान्य परिचय : "जयोदय महाकाव्य" की छन्दोयोजना के पूर्व छन्द का सामान्य परिचय, महत्ता एवं उपयोगिता आदि पर प्रकाश डालना अनुपयोगी नहीं होगा । छन्दःशास्त्र की गणना वेदाङ्ग के अन्तर्गत होती है । छन्दों के बिना वेदमन्त्रों का अध्ययन अध्यापन सम्भव नहीं है । वैदिक ज्ञान के लिये छन्दों का ज्ञान अनिवार्य है, अन्यथा उसका ठीक-ठीक ज्ञान नहीं हो पायेगा। इसीलिये छन्द को वेद का पाद कहा गया है । इसी प्रकार काव्य के भी पाद का आधार छन्द ही है । यथा पाद के बिना सर्वसाधन सम्पन्न व्यक्ति भी अवरुद्ध गति बन जाता है, अथवा अपनी आधार भूमि से ही वंचित हो जाता है तद्वत् छन्द के अभाव, विषय, अनुरूप छन्द की योजना से समग्र रस, रस भावादि सम्पन्न भी कवि का काव्य स्वाभाविक, अभीष्ट, समुत्कृष्ट पद्धति में शिथिल प्रतीत होता है । काव्य में जिस प्रकार गुण और अलङ्कार का स्थान है, वैसे ही छन्दोयोजना का भी मुख्य स्थान है। दुर्भाग्यवश हमारी आस्था जितनी अलङ्कारिक आदि पर काव्यों में रहती है, उतनी छन्दों पर नहीं । इसके अनेक कारण बन सकते हैं - 1. प्रथम तो यह है कि छन्द क्योंकि अभिव्यक्ति के माध्यम हैं अतः उनकी सीमा वहीं तक मानी गयी। 2. द्वितीय यह कि काव्यशास्त्र के प्रथम चरण में जहाँ अलङ्कार-गुण- रसादि सभी तत्त्वों को अलंकार माना गया वहीं सम्भवतः छन्द को भी आत्मसात् करने की प्रवृत्ति नहीं रही। 3. तृतीय यह कि छन्द का अभाव या उसकी उपेक्षा का एक अन्य कारण यह भी हो सकता है कि वर्ण्य विषय के साथ समन्वय का न होना । क्योंकि छन्दोबद्धता कहीं विषय के प्रतिकूल पड़ जाती है। 4. चतुर्थ यह है कि अज्ञानवश अथवा छन्द के प्रति अभिरुचि न होने से छन्द को काव्यशास्त्र की परिधि में नहीं किया गया हो। अतएव ऐसे विचारों के व्यक्ति काव्य शरीरान्तर्गत छन्द को नहीं मानते । इसलिये छन्द काव्य का अलङ्कार मात्र है, मूल तत्त्व नहीं । यही नहीं कतिपय विचारकों का मत है कि सर्वश्रेष्ठ काव्य की सत्ता छन्द के बिना भी हो सकती है । किन्तु विचार करने पर उक्त मत समीचीन नहीं प्रतीत होता । क्योंकि छन्दः शास्त्र इतना समीक्षित शास्त्र है कि उसकी नान्तरीयकता में किसी प्रकार का कोई संशय नहीं हो सकता । वर्ण एवं मात्राओं के द्वारा छन्दों का निर्माण होता है । जिस प्रकार विष्णु से त्रैलोक्य
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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