SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (28) बात को समझते हैं कि प्राणियों को न मारना तो हिंसा की निवृत्ति है, प्रवृत्ति नहीं और रक्षा शब्द मरते प्राणी को बचाने का अर्थ का वाचक होने से प्रवृत्ति का बोधक है । निवृत्ति का बोधक नहीं है। इसको इस प्रकार समझना चाहिये कि एक मनुष्य प्राणी को नहीं मारता है और दूसरा मरते को बचाता है इनमें पहले के लिये यह कहा जाता है कि यह प्राणी को नहीं मारता है और दूसरे के लिए वैसा न कह कर ऐसा कहा जाता है कि यह प्राणी की रक्षा करता है । इस प्रकार रक्षा और न मारना इन दोनों का प्रयोग यानि व्यवहार भिन्न-भिन्न अर्थो में होने से इनका भेद स्पष्ट सिद्ध है । तथापि इन दोनों का एक ही अर्थ बताकर भोले जीवों को धोखा देना तेरहपंथियों का दुराग्रह या व्यामोह के सिवाय और क्या हो सकता है ? राजप्रश्नीय सूत्र में राजा प्रदेशी का वर्णन आता है। वहां कहा है कि जैन धर्म अंगीकार करने के पहले राजा प्रदेशी बड़ा ही निर्दय और हिंसक था। उसके हाथ प्राणियों के रक्त से रञ्जित रहते थे । वह दीनहीन प्राणियों से दान की वस्तु छीन लिया करता था । केशीश्रमण मुनि ने धर्मोपदेश देकर जब उसको जैन धर्म का अनुयायी बनाया तब उसने अपनी समस्त पहिले की हिंसात्मक क्रिया छोड़ दी और प्राणियों पर दया करके उनके लिये दानशाला बनाई और दानशाला बनाकर उन्हें अशनपानादि देना प्रारम्भ कर दिया। यहां पाठकों को यह विचारना चाहिये कि राजा प्रदेशी यदि साधु से भिन्न समस्त
SR No.006168
Book TitleSupatra Kupatra Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbikadutta Oza
PublisherAadinath Jain S M Sangh
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy