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________________ की अपेक्षामूर्ति की उपासना अधिक फलदायक है, क्योंकि मूर्ति में स्थापना के साथ नाम भी आ जाता है। जैसे आप किसी को यूरोप की भौगोलिक स्थिति मुंह जबानी समझाते हैं, परन्तु समझने वाले के हृदय में उस वक्त यूरोप का हूबहु चित्र चित्त में नहीं खिच सकेगा। जैसा आप यूरोप का लिखित मानचित्र (नक्शा) उसके सामने रख उसे यूरोप की भौगोलिक स्थिति का परिचय कराते हैं। इससे सिद्ध होता है कि केवल नाम के रटने से-मूर्ति को देखते हुए नाम का रटना विशेष लाभदायक है। प्र. - आप मूर्ति को पूजते हो तो मूर्ति के बनाने वाले को क्यों नहीं पूजते? उ. - आप अपने पूज्यजी को वन्दना करते हो परन्तु उनके गृहस्थावस्था के माता पिता जिन्होंने उनका शरीर गढ़ा है उन्हें वन्दना क्यों नहीं करते हो? पूज्यजी से तो उनको पैदा करने वाले आपके मतानुसार अधिक ही होंगे। - प्र. - मूर्ति सिलावट के यहां रहती है तब तक आप उसे नहीं पूजते और मन्दिर में प्रतिष्ठित होने के बाद उसे पूजते हो, उसका क्या हेतु है? ___उ. - आप वैरागी को दीक्षा देते हैं दीक्षा लेने के पूर्व तो उसे कोई तिक्वत्तो की वन्दना नहीं करता और दीक्षा लेने के बाद उसी वक्त वन्दना करने लग जाते हो तो क्या दीक्षा आकाश में घूमती थी, जो एक दमवैरागी के शरीर में घुस गई कि वह वन्दनीक बन गया? - प्र. - उनको (वैरागी को) तो सामायिक का पाठ सुनाया जाता है इससे वह वन्दनीय हो जाता है। - उ. - इसी तरह मूर्ति की भी मंत्रो द्वारा प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। जिससे वह भी वन्दनीय हो जाती है। . प्र. - सिलावट के घर पर रही नई मूति की आप आशातना नहीं टालते और मन्दिर में आने पर उसकी आशातना टालते हो। इसका क्या कारण है? - उ. - गृहस्थों केमकान परजो लकड़ी का पाट पड़ा रहता है उस पर आप भोजन करते हैं. बैठते है, एवं अवसर पर जूता भी रख देते हैं परन्तु जब वही पाट साधु अपने सोने के लिये ले गये हो तो आप उसकी आशातना टालते हो। यदि अनुपयोगसे आशातना भी होगईहो तो प्रायश्चित्त लेतेहो। इसका क्रोध आबाद-जीवन बरबाद। क्षमा वीरस्य भूषणम्। .
SR No.006167
Book TitleJain Dharm Me Prabhu Darshan Pujan Mandirki Manyata Thi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarmuni
PublisherJain S M Sangh Malwad
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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