SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसमें कहा गया है कि जो तीर्थङ्कर हो गये हैं, और जो होने वाले हैं और जो वर्तमान में विद्यमान हैं, इन सब को मन, वचन, काया से नमस्कार करता हुँ। फिर भी आप तेरह पंथियों से तो अच्छे ही हो, तेरह पंथी तो भगवान को चूका बतलाते हैं, आप अवंदनीय बतलाते हैं, परन्तु भगवान के दीक्षा लेने के बाद भी किसी साधु श्रावक ने उन्हें वन्दना नहीं की, तो क्या आप भी भगवान को दीक्षा की अवस्था में अवन्दनीय ही मानते हैं? क्योंकि आपकी दृष्टि से साधु श्रावक जितना भी गुण उस समय (दीक्षाऽवस्था) में भगवान् में न होगा? मित्रो ! अज्ञानता की भी कुछ हद हुआ करती है! __ प्र. - मूर्ति में गुण स्थान कितना पावे? उ. - जितना सिद्धो में पावे, क्योंकि मूर्ति तो सिद्धों की है। एवं जीवों के भेद योगादि समझें। प्र. - श्रावक के 12 व्रत हैं मूर्ति-पूजा किस व्रत में है ? ____उ. - मूर्तिपूजा, मूल सम्यक्त्व में है, जिस भूमि पर व्रतरूपी महल खड़ा है वह भूमि समकित है।आप बतलाईये शम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा, आस्था 12 व्रतों में से किस व्रत में है? यदि कहो कि यह तो सम्यक्त्व के लक्षण हैं तोमूर्तिपूजा भीसमकित को निर्मल करनेवाली व्रतोंकीमाता है। मूर्ति-पूजा का फल यावत् मोक्ष बतलाया है। तब व्रतों का फल यावत् बारहवां देवलोक (स्वर्ग) ही बतलाया है। और समकित के बिना व्रतों की कोई कीमत भी तो नहीं है। ___जैनमूर्ति को नहीं मानने वाले लोग मांसमदिरादिभक्षक भैरू, भवानी, यक्षादिदेव और पीरपैगम्बर आदि देवों को वन्दन पूजन कर सिर झुकाते हैं, यही उनकी अधिकता है। गाय को हरी घांस खाने को नहीं मिलती तो सूखी या सड़ी घांस ही खा लेती है। - प्र. - पत्थर की गाय को दोहे तो क्या वह दूध दे सकती है? यदि नहीं तो फिर पाषाण की मूर्ति कैसे मोक्ष दे सकती है? उ. - हां! जैसे मूर्ति मोक्ष का कारण है वैसे ही पत्थर की गाय भी दध का कारण हो सकती है। जैसे किसी मनुष्य ने पत्थर की गाय देखी। उससे उसको असली गाय का भान जरूर हो गया कि गाय इस शक्ल की होती है, फिर वह किसी समय जंगल में भूखा प्यासा भटक रहा हो और उसन क्रोध को जितने हेतु मौन व उस स्थान से हट जाओ। (10
SR No.006167
Book TitleJain Dharm Me Prabhu Darshan Pujan Mandirki Manyata Thi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarmuni
PublisherJain S M Sangh Malwad
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy