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________________ काव्यमण्डन : मण्डन करती है । महाभारत में यह प्रस्ताव ब्राह्मण से किया गया है जबकि काव्यमण्डन में यही प्रस्ताव पुत्र के भावी वध से विकल ब्राह्मणी को किया जाता है ।" महाभारत में पाण्डव द्रुपद की राजधानी में कुम्भकार की शाला में ठहरते हैं। काव्यमण्डन में इसका प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है । मण्डन के अनुसार द्रौपदी-स्वयम्वर की शर्त तेल में छवि देखकर राधायन्त्र को बींधना था । स्पष्टतः मण्डन ने महाभारत की कठिन शर्त को सरल बनाने का प्रयत्न किया है क्योंकि महाभारत में पांच तीरों से यन्त्र बींधने का उल्लेख है। प्राप्त वस्तु (द्रौपदी) को बिना देखे उसे पांचों भाइयों में बांटने के कुन्ती के आदेश की चर्चा महाभारत तथा काव्यमण्डन दोनों में हुई है। महाभारत में द्रुपदराज व्यास की प्रेरणा से द्रौपदी का पांच पाण्डव कुमारों से विधिवत् विवाह करते हैं । काव्यमण्डन में व्यास की भूमिका का निर्वाह वासुदेव कृष्ण करते हैं।" काव्यमण्डन में श्रीकृष्ण की कृपा से ही पाण्डव लाक्षागृह से सकुशल बच निकलने में सफल होते हैं। महाभारत में इसका श्रेय महात्मा विदुर की दूरदर्शिता को दिया गया है। काव्यमण्डन के इतिवृत्त में किर्मीर-वध की घटना को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । महाभारत में इसका मूल कथा से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसीलिए इसका वर्णन आदिपर्व से पृथक् वन पर्व में किया गया है। दनुज किर्मीर अपने भाई बक तथा मित्र हिडिम्ब के वध तथा हिडिम्बा के अपहरण से क्रुद्ध होकर भीम पर आक्रमण करता है और मारा जाता है। काव्यमण्डन में भीम अपने अपहृत भाइयों तथा माता को किर्मीर के चंगुल से बचाने के लिये उसका वध करता है ।२२ संभवतः भीम की प्रचण्डता तथा दुर्द्धर्षता को कथानक में सविशेष रेखांकित करने के लिए मण्डन ने इस प्रसंग को अपने इतिवृत्त में आरोपित किया है। काव्य में वस्तुतः ' कितैरान्तक' (१२.७१) संबोधन के द्वारा भीम के इस कृत्य तथा शौर्य का अभिनन्दन किया गया है। १६. महाभारत, १.१६०.३, काव्यमण्डन, ९.८। १७. राधायन्त्रीपरिष्टात्सुघटितशफरी तैलपूर्णे फटाहे । ....""हन्यानुषि कृतगुरुश्चक्षुषकेषुणालं । काव्य मण्डन, १२.१८ छिद्रण यन्त्रस्य समर्पयध्वं शरैः शितोमचरवंशाधैः । महाभारत, १.१८४.३५ १८. काव्यमण्डन, १३.१६, महाभारत, १.१९२.२ । १९. महाभारत, १.१९७.४, काव्यमण्डन, १६.३७,३९ । २०. काव्यमण्डन, ४.१३, महाभारत, १.१४६.१७ । २१. महाभारत, ३.११.३०,३२ । २२. काव्यमण्डन, ७.३७ ।
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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