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________________ जैन संस्कृत महाकाव्य उत्कृष्ट अंश हैं । जयशेखर की कविता में जो प्रसाद तथा आकर्षण है, उस पर भी कालिदास की शैली की सहजता तथा भाषा की प्रांजलता की छाप है। रसविधान काव्य की अन्तरात्मा उसकी रसात्मकता में निहित है, यह कथन सर्वमान्य तथ्य की आवत्ति है । शान्तसहित नौ काव्यरसों का प्राचीनतम उल्लेख अनुयोगद्वार सूत्र में हुआ है। उत्तरवर्ती काव्यशास्त्र के क्रम के विपरीत इसमें 'वीर' को प्रथम स्थान प्राप्त है। णव कव्वरसा पणत्ता, तं जहावीरो सिंगारो अभुओ अ रोहो अ होइ बोद्धव्वो। बेलणओ बीमच्छो हासो कलुणो पसंतो अ॥३ महाकाव्य में शृंगार, वीर तथा शान्त में से किसी एक का अंगी रस के रूप में परिपाक विहित है। अन्य रस उसके पोषक बन कर महाकाव्य की रसवत्ता को तीव्र बनाने में सहायक होते हैं । जैनकुमारसम्भव रसवादी कृति नहीं है। नायक ऋषभदेव के विवाह तथा कुमार-जन्म से सम्बन्धित होने के नाते इसमें शृंगार रस के प्राधान्य की न्यायोचित अपेक्षा थी, परन्तु काव्यनायक की वीतरागता रेखांकित करने के लिये उनकी आसक्ति की अपेक्षा विरक्ति को काव्य में अधिक उभारा गया है । उनके लिये वैषयिक सुख विषतुल्य है [३।१५] । वे 'अवक्रमति' से काम में प्रवृत्त होते हैं और 'उचित उपचारों' से विषयों को भोगते हैं (६।२५-२६)। जहां जयशेखर के आदर्शभूत कालिदास ने शिव-पार्वती के विवाहोत्तर सम्भोग का उद्दाम चित्रण किया है, जैन कवि ने अपने निवृत्तिवादी दृष्टिकोण के कारण जानबूझकर एक ऐसा प्रसंग हाथ से गंवा दिया है, जिसमें रस की उच्छल धारा प्रवाहित हो सकती थी। वर्तमान रूप में, जैनकुमारसम्भव में शृंगार का अंगी रसोचित परिपाक नहीं हुआ है, फिर भी इसमें सामान्यतः शृंगार की प्रधानता मानी जा सकती है । जैनकुमारसम्भव के विविध प्रसंगो में श्रृंगार के कई रोचक चित्र दिखाई देते हैं । ३२. इस विषय के सविस्तार अध्ययन के लिये देखिये मेरा निबन्ध-Jayasekh ara's Indebtedness to Kalidasa : Bharati-Bhanam : Dr. K. V. Sarma Felicitation Volume, Hoshiarpur, 1980, P. 193-203. ३३. अणुओगद्दाराइम्, जैन आगम सीरीज, ग्रन्यांक १, श्री महावीर जैन विद्यालय, .. बम्बई, १९६८ पृ० १२१-१२४ ३३a. शृङ्गारवीरशान्तानामेकोऽङ्गी रस इष्यते । अङ्गानि सर्वेऽपि रसाः सर्वे नाटकसन्धयः ॥ साहित्यदर्पण, ६.३१७
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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