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________________ पार्श्वनाथकाव्य : पद्मसुन्दर ४०७ में देवों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। पुराणों की तरह प्रस्तुत काव्य में अलौकिक घटनाओं का यथेष्ट समावेश है। शिशु पार्श्व का मात्रोत्सव एक योजन लम्बे मुंह वाले कलशों से किया जाता है। मुनि अरविन्द के दर्शन मात्र से मरुभति गज को अपने पूर्वजन्म का स्मरण हो जाता है। पार्श्वनाथकाव्य में एक अन्य उल्लेखनीय पौराणिक प्रवृत्ति यह है वि इसमें स्तोत्रों का सन्निवेश बहुत तत्परता से किया गया है। तीसरे से सातवें तक कोई सर्ग ऐसा नहीं जिसमें कवि ने स्तुति के द्वारा अपनी भक्ति की अभिव्यक्ति न की हो । पार्श्वनाथकाव्य के स्तोत्रों की विशेषता यह है कि इनमें उपनिषदों की विरोधाभासात्मक शैली में जिनेश्वर के स्वरूप का वर्णन किया गया है । वस्तुतः कवि ने पार्श्व को परब्रह्म के रूप में परिकल्पित किया है। वे सामान्य काव्यनायक अथवा मर्त्य नहीं हैं। कवि परिचय तथा रचनाकाल पार्श्वन थ-काव्य के प्रणेता उपाध्याय पद्मसुन्दर का परिचय उनके यदुसुन्दर की समीक्षा के अन्तर्गत दिया जा चुका है। पद्मसुन्दर पण्डित पद्ममेरु के शिष्य तथा आनन्दमेरु के प्रशिष्य थे। स्वयं कवि के कथनानुसार पार्श्वनाथकाव्य की रचना सम्वत् १६१५ (सन् १५५८) वी मार्गशीर्ष कृष्णा चतुर्दशी, सोमवार को पूर्ण हुई थी। रायमल्लाभ्युदय के समान इसके प्रणयन में भी रायमल्ल की प्रेरणा निहित है। अब्दे विक्रमराज्यतः शरकलाभृत्तभूसंमिते मार्गे मास्यसिते चतुर्दशदिने सत्सौम्यवारांकिते। काव्यं कारितवानतीवसरसं श्रीपार्श्वनाथाह्वयं सोऽयं नन्दतु नन्दनः परिवृतः श्रीरायमल्लस्तदा ॥ उपाध्याय पद्मसुन्दर बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न विद्वान् तथा आशुकवि थे। उन्होंने सम्वत् १९१४ की कात्तिक शुक्ला पंचमी को भविष्यदत्तचरित की रचना सम्पन्न की, सम्वत् १६१५, ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को रायमल्लाभ्युदय का निर्माण हुआ" और उसी वर्ष मार्गशीर्ष की कृष्णा चतुर्दशी को प्रस्तुत काव्य पूरा हुआ। इस प्रकार लगभग एक वर्ष में, उन्होंने पर्याप्त विपुलाकार तीन ग्रन्थों की रचना कर, अपनी कवित्वशक्ति को प्रमाणित किया। ६. वही, ५.८१.८३. ७. वही, ७.६४ तथा प्रत्येक सर्ग की पुष्पिका। ८. वही, ७.७४ ६. नाथूराम प्रेमी : जैन साहित्य और इतिहास (पूर्वोद्धृत), पृ० ३६६ १०. वर्षे विक्रमराज्यतः शरकलामत्तभूसंमिते । ज्येष्ठे मासि सिते च पंचमदिनेऽहंद्वत्तसंदभितम् । रायमल्लाभ्युदय, प्रशस्ति, २४.
SR No.006165
Book TitleJain Sanskrit Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyavrat
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages510
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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